Book Title: Jain Itihas ki Prerak Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 27
________________ १८ जैन इतिहास की प्रेरक कथाएँ बैठी मिल गई। राजकुमारी को इस प्रकार प्राप्त कर मंत्री के प्रति राजकुमार को तो रोष हुआ हो, जनता में भी रोष का तूफान उमड़ आया। राजकुमार ने मंत्री के कुकृत्यों का भण्डाफोड़ करके उसे सपरिवार तुरन्त देश से निकल जाने का आदेश दे दिया। नगर-जनों की अपार भीड़ अब महान् ज्ञानी यव राजर्षि के स्वागत में उमड़ पड़ी। राजर्षि ने विशाला के नागरिकों एवं राज - परिवार को उपदेश दिया। ज्ञान और विद्या का चमत्कार छिपा नहीं रहा । उन्होंने बताया कि "तीन लघुगाथाएँ किस प्रकार अनेक अनर्थों से बचाकर मेरे अपने जीवन को ही नहीं, किन्तु नष्ट - भ्रष्ट होते विशाला के साम्राज्य को भी उबारने में समर्थ हो सकी।" ज्ञान और अध्ययन के प्रति मुनि के हृदय में तीव्र उत्कंठा जागृत हो गई। मुनि की सजीव प्रेरणा से विशाला के, वृद्ध, तरुण, स्त्री-पुरुष ज्ञानोपासना में जुट गए। एक छोट-सी घटना ने वह परिवर्तन कर दिया कि एक जन्म का ही नहीं, किन्तु अनन्त - अनन्त जन्मों का अज्ञान नष्ट हो कर ज्ञान का महाप्रकाश जगमगा उठा। -भक्त परिज्ञा प्रकीर्णक ८७, उपदेशप्रासाद १५/२१४ -आख्यानक मणिकोश (आम्रदेवसूरि) १४/४४ Jain Education International onal For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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