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जैन इतिहास की प्रेरक कथाएं
को राज - गद्दी पर बैठाने का षड्यंत्र रचा। राजकुमारी अणुल्लिका बड़ी सुन्दर और चतुर थी। मंत्री ने उसे भी अपनी पुत्र-वधू बनाने के लिए अपने महल के तहखाने में बन्द कर दिया। गर्दभिल्ल ने बहन की बहुत खोज की, पर कहीं अता-पता नहीं लगा। इधर राजा की हत्या का षड्यंत्र चल ही रहा था कि मंत्री को यव राजर्षि के आगमन की सूचना मिली। मन्त्री घबड़ा गया, सोचा-"राजर्षि ने यदि अपने ज्ञान-बल से मेरा भंडाफोड़ कर दिया, तो मैं कहीं का भी न रहूँगा । यह तो काँटा है, रात-रात में इसे समाप्त कर डालना चाहिए । पर, राजर्षि की हत्या ? यदि राजा को खबर मिली, तो इसका परिणाम क्या होगा?"-दीर्घपृष्ठ इन्हीं गहरे विचारों में उलझ गया।
...."पिता की हत्या, पुत्र के हाथ से । यही तो राजपरम्परा का इतिहास रहा है।"--दीर्घपृष्ठ के धूर्त दिमाग में सहसा एक विचार उठा, और रात के अन्धकार में अकेला ही राजमहल की ओर चल पड़ा।
राजकुमार ने रात में मन्त्री को आया देखकर आश्चर्य किया । मन्त्री बहुत गम्भीर था। कोई बहुत गहरी चिंता उसके चेहरे पर छाई हुई थी। राजकुमार भी गम्भीर हो गया। दोनों मन्त्रणा-कक्ष में चले गए।
मन्त्री ने राजकुमार को बहकाया-"यव राजर्षि साधना से भ्रष्ट होकर पुनः राज्य हथियाने के लिए आ रहे हैं । वे
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