Book Title: Jain Itihas ki Prerak Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 19
________________ १० जैन इतिहास की प्रेरक कथाएँ ___यव ऋषि एक गाँव में पहुंचे। गांव के बाहर मैदान में बालक 'गिल्ली-डंडा' खेल रहे थे। गिल्ली कहीं दूर गड्ढे में जा गिरी, तो बालक उसे इधर - उधर खोजने लगे। एक बालक, जो खेल में बड़ा चतुर था, उसने एक गाथा बोली "इओ गया, तो गया, जोइज्जती न दीसई । .. अम्हे न दिट्ठा, तुम्हे न दिट्ठा, अगडे छूढ़ा अणुल्लिया ॥" "-इधर से गई, उधर से गई। देखने पर भी कहीं दिखाई नहीं दे रही है । न हमने देखो, न तुमने देखी। मालम होता है, वह गड्डे में पड़ी है।" बालक के मुंह से गाथा सुनकर मुनि के पाँव वहीं रुक गए। गाथा बड़ी अच्छी लगी, मुनि ने इसे भी याद कर लिया। अब दो दिन के उपदेश की तैयारी मुनि के पास हो गई, वे वहाँ से आगे चल पड़े। पद-यात्रा करते-करते यव राजर्षि विशाला नगरी में पहुंचे । नगर में पहुंचते - पहुंचते संध्या हो गई, तो यव मुनि नगर के बाहर एक कुम्भकार के घर पर ही रात्रि - विश्राम के लिए ठहर गए। मुनि के सामने ही एक औटले ( अन्दर के चबूतरे) पर कुम्भकार बैठा था। उसने देखा कि एक चूहा बार - बार उसके आस-पास बड़े मजे से दौड़ रहा है। कुम्भकार थोड़ासा हिला, तो चहा मारे डर के भाग गया। फिर आया, और कुम्भकार को देखते ही डरकर फिर बिल में घुस गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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