Book Title: Jain Itihas ki Prerak Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 18
________________ तीन गाथाएँ "बुढ़ापे में बुद्धि पक गई, स्मृति मंद हो चली । क्या करू ? अब कुछ याद ही नहीं हो पाता ।" आचार्य ने राजर्षि में अध्ययन की जिज्ञासा जगाने का एक मार्ग सोचा । उन्हें विशाला के नगरजनों व राज परिवार को उपदेश देने के लिए विशाला भेजा । आचार्य की आज्ञा स्वीकार करके यवराज ऋषि चल पड़े । चलते-चलते मार्ग में एक वृक्ष की छाया में विश्राम करने के लिए बैठे । पास ही में एक जौ का खेत लहलहा रहा था । पकी-पकी सुनहली बालें देखकर खेत के किनारे खड़े एक गधे के मुँह में पानी छूटा आ रहा था । वह बार-बार खेत में घुसने की कोशिश कर रहा था, किन्तु सामने डंडा लिए खड़े किसान को देखकर फिर पीछे हट जाता । उसकी यह चेष्टा देखकर किसान एक गाथा गुनगुनाने लगा ओहावसि पहावसि ममं चेव निरक्खसि । " 1 लक्खिओ ओ ते अभिपाओ, जवं भक्खसि गद्दहा ।" " हे गर्दभ ! तू इधर उधर क्यों घूम रहा है ? आगे बढ़ता है, पीछे हट जाता है । मुझे ही देख रहा है न ? यव (जौ) खाने का तेरा विचार है - मैं समझ गया ।" किसान के मुँह से यव ऋषि ने यह गाथा सुनी। उन्हें बड़ी अच्छी लगी। सोचा- चलो, इसी गाथा का सहारा लेकर एक दिन का उपदेश कर देंगे। मुनि ने गाथा रट ली। दिलचस्पी होती है, तो हर चीज याद हो ही जाती है। मुनि गाथा को याद करके आगे बढ़ चले | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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