Book Title: Jain Itihas ki Prerak Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ जैन इतिहास की प्रेरक कथाएँ . "चौरासी हजार मुनियों को पारणा कराने में जितना पुण्य होता है, उतना पुण्य शुक्ल और कृष्ण पक्ष में ब्रह्मचर्य धारण करने वाले एक दम्पती को बहुमान एवं भक्ति के साथ भोजन कराने से हो सकता है ।" " भन्ते ! ऐसे दम्पती भरत क्षेत्र में कहीं हैं ?" सेठ ने विनय पूर्वक पूछा । मुनि ने विजय और विजया के गुप्त ब्रह्मचर्य का सांगोपांग परिचय देते हुए सेठ जिनदास को उनकी भक्ति करने के लिए कहा । जिनदास अंग देश से सपरिवार सुदूर कच्छ देश में पहुंचा । और अगाध श्रद्धा एवं भक्ति से विजय दम्पती की प्रशंसा करता हुआ भक्ति करने लगा । उन्हें बड़े ही प्रेमाग्रह से अपने यहाँ निमंत्रित कर भोजन भी कराया। सेठ जिनदास के आनन्द की कोई सीमा न रही । ७ लोगों ने जब इतनी दूर से आने का कारण पूछा, और उत्तर में जिनदास के मुँह से केवली द्वारा बताया हुआ यह ब्रह्मचर्यं सम्बन्धी रहस्य सुना, तो उनके आश्चर्य का कोई पार न रहा । अब तो नगर का जन-जन विजय और विजया दम्पती को भगवान् की तरह पूजने लग गया । इस प्रकार ब्रह्मचर्य की बात प्रकट होने पर विजय एवं विजया ने अपनी पूर्व प्रतिज्ञा के अनुसार मुनिव्रत स्वीकार कर लिया, और निर्मल एवं कठोर साधना करके मोक्ष गति प्राप्त की । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94