Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 04 Author(s): Nathuram Premi Publisher: Jain Granthratna Karyalay View full book textPage 9
________________ शान्ति-वैभव । wwwwwwwwwww जब मनुष्यको इतनी शांति प्राप्त हो जाती है कि शांति उसका एक अंग बन जाती है, वह शांतिमय हो जाता है अर्थात् जहाँ जाता है वहाँ शांतिका ही उसमें प्रकाश होता रहता है तो उस समय कहना चाहिए कि उस मनुष्यने अपने जीवनमें सफलता प्राप्त करली । शांति ऐसी वस्तु नहीं है जो अपने आप मिलजाय अथवा एकदम मिलजाय । इसके प्राप्त करनेके लिए और बहुतसे गुणोंकी अवश्यकता है। पहले उनको सीखना चाहिए। __जीवनका तात्पर्य केवल यही नहीं है कि जिस तरह हो सके जीवन बिता दे । वास्तवमें जीवन एक बड़े महत्त्वकी चीज़ है। उसका आदर करना जीवनका मुख्य कर्तव्य है । किस तरह जीवन अपने तथा दूसरोंके लिए उपयोगी बनसकता है, इसके जानने और सीखनेकी बड़ी भारी ज़रूरत है । जब मनुप्यमें शांतिका प्रवेश होजाता है तब वह दुनियाके झगड़ोंसे हटकर अपने आपमें मग्न हो जाता है । दुनियामें कितना ही शोरोगुल हुआ करे, उसे कुछ हानि नहीं पहुँचती । इससे यह न समझना चाहिए कि वह अपने स्वार्थके कारण दुनियासे अलग होता है; नहीं नहीं ऐसा मनुष्य विश्वभरके प्राणियोंके आनंदमें अपना आनंद मानता है। उसकी शांति परम पवित्र शांति है। वह संसारमें रहनेकी शक्तिको प्राप्त करनेके लिए संसारसे अलग होता है। ( अपूर्ण) दयाचन्द्र जैन. बी. ए.। चिरंजीलाल माथुर बी. ए.। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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