Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 04
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 30
________________ २२० जैनहितैषी तेरापंथी भाई वीसपंथियोंसे और जैनगज़टके उपासक छपे हुए ग्रन्थोंसे । कुएके जलसे नहा चुकनेके बाद यदि नलका एक छींटा - भी कहींसे उन पर आ पड़े तो उन्हें तत्काल ही कई डोल पानीसे फिर नहाना पड़े ! नहाकरके जब वे कुएसे घर जाते हैं तब छायाको बचाते हुए चलते हैं । यदि किसीकी छाया पड़ जाती है तो वे लौट जाते हैं और दो चार डोल पानी फिर ऊपरसे डाल लेते हैं ! दिन भरमें कमसे कम ५-६ बार तो उन्हें नहाना ही पड़ता है। यदि कभी किसी मुसलमानका या अस्पृश्य जातिका स्पर्श हो जाता हैं तो वे स्पर्श करनेवाले अपने शरीरको ५० डोल पानीस नहानकी सजा देते हैं ! किसका स्पर्श होनेपर कितने डोल पानीसे नहाना चाहिए इसके भी नियम बने हुए हैं। हमारे मुहल्लेमें जो दूसरे मर्जादी महाशय हैं वे पवित्रताके सम्बन्धमें अन्य मर्जादियोंसे बहुत ऊँचे दर्जे पर पहुँच गये हैं । उनका सेरों पीली मिट्टीसे पचासों बार टिहुनियोतक हाथ और घुटनों तक पैर धोनेका तमाशा तो देखने योग्य होता ही है, साथ ही उनकी शौचक्रियाकी सावधानी देखकर विधाताको यह उलहना दिये बिना नहीं रहा जाता कि ये दिव्य जीव किसी दिव्यलोकमें या जललोकमें ही रहने योग्य थे; इन्हें तुमने इस अपवित्र नरलोकमें क्यों जन्म दिया ? ___एक दिन आप पाखाने से निकलकर सीधे कुएँ पर गये और वहाँ रक्खे हुए कपड़ेके डोलसे पानी निकाल निकालकर उपर डालने लगे । बाडीकी देखरेख रखनेवाले जमादारने देखा कि मादी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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