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जैनहितैषी
सरकारकी सहायतासे नहीं हो सकता; इसके लिए देशवासियोंको स्वयं प्रयत्न करना चाहिए । विशेष करके शिक्षितोंका ध्यान इस ओर जाना चाहिए। शिक्षाप्राप्तिका फल केवल धन कमाना या औरों पर हुकूमत करना नहीं है। जिस शिक्षासे मनुष्य केवल अपना ही स्वार्थसाधन करता है उसे शिक्षा कहना 'शिक्षा' का अपमान करना है । शिक्षितोंको स्वार्थत्याग करना चाहिए और अपने भाईयोंको शिक्षित बनानेमें अपनी सारी शक्तियाँ लगा देना चाहिए। ___ सरकारी स्कूलोंकी शिक्षाके विषयमें उन्हें यह धारणा हो गई थी कि उनमें आचरणके सुधारनेकी ओर ध्यान नहीं दिया जाता, नैतिक बलको उत्तेजन नहीं दिया जाता, देखने और विचारनेकी शक्तिका गला घोंट दिया जाता है और विद्यार्थी केवल पुस्तकोंके दास बन जाते हैं। धर्म जो मनुष्यत्वका भूषण है उसकी ओरसे तो वे बहुत ही विरक्त हो जाते हैं। इसलिए सरकारी शिक्षापद्धतिका अनुकरण न करके हमें अपना शिक्षाक्रम बनाना चाहिए और उसके अनुसार शिक्षा देनेवाली स्वतंत्र संस्थायें हमारे देशवासियोंको स्थापित करना चाहिए।
ऐसी शिक्षासंस्थायें यदि जुदा जुदा जातियों या समाजोंकी ओरसे स्थापित की जायँगी तो वे अच्छा काम कर सकेंगी; उनकी ओर जुदा जुदा जातियोंका विशेष प्रेम होगा और वे उनकी उन्नतिमें तनमनधनसे सहायता करेंगी। कमसे कम देशकी वर्तमान अवस्थामें तो वे इस प्रकारके जुदा जुदा प्रयत्नोंको बहुत लाभकारी समझने लगे।
कालेज छोड़ने पर तो सेठीजीके मस्तकमें ये बातें रातदिन
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