Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 04
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 59
________________ पं० अर्जुनलाल जी सेठी बी. ए.। २४७ जयपुरमें कुछ विद्यालय और कन्या पाठशालायें स्थापित कर रक्खी थीं। इन सबमें समितिके पठनक्रमके अनुसार पढाई होती थी । बारह हज़ार वार्षिक खर्चमेसे अधिकांश रुपया इन्हीं पाठशालाओंके काममें खर्च होता था। __ 'श्रीवर्द्धमानजैनविद्यालय ' समितिका आदर्श विद्यालय था । इसमें लगभग २०० विद्यार्थी शिक्षा पाते थे। विद्यालयके साथ एक छात्रालय भी था जिसमें दूर दूरसे आये हुए लगभग ५० विद्यार्थी रहते थे । विद्यार्थियोंको शारीरिक मानसिक और धार्मिक तीनों प्रकारकी शिक्षायें दी जाती थीं। शिक्षापद्धतिके सम्बन्धमें सेठीजीका ज्ञान और अनुभव बहुत ही बढ़ा चढ़ा है । उन्होंने यूरोप, अमेरिका, जापान आदि सारे उन्नत देशोंकी शिक्षाप्रणालीका अध्ययन और मनन किया है । इस विषयके बहुत ही कम ग्रन्थ होंगे जो उन्होंने न पढे हों । उन्होंने कांगडी, ज्वालापुर, वृन्दावन आदिके गुरुकुल, तथा रवीन्द्रबाबूका शान्तिनिकेतन, आदि एतद्देशीय आदर्श विद्यालयोंका अच्छी तरह अवलोकन किया है तथा उनकी शिक्षापद्धति पर विचार किया है । वे स्वयं भी एक अच्छे शिक्षक हैं । इससे पाठक जान सकते हैं कि उनके विद्यालयका पठनक्रम और पठनप्रणाली कितनी अच्छी होगी । वे अपने विद्यालयमें एक भी अध्यापक ऐसा न रखते थे जो शिक्षापद्धतिका जानकार न हो। अध्यापकोंको वे स्वयं शिक्षा देनेकी पद्धति बतलाते थे। विद्यालयमें संस्कृत, अँगरेजी और हिन्दी तीन भाषाओंकी शिक्षा सहजसे सहज पद्धतिके द्वारा दी जाती थी। जैनधर्मकी शिक्षाकी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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