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जैनहितैषी
कके लिखनेमें बहुत कुछ सफलता प्राप्त हुई है; उनकी रचनाशैली बतलाती है कि कालान्तरमें वे एक अच्छे उपन्यास लेखक हो जावेंगे; परन्तु उन्होंने जिन विचारोंको कई पात्रोंके चरित्रोंके भीतरसे प्रकट किये हैं वे ठीक नहीं । विधवाविवाहके अनुयायी और सुधारक भी उन्हें पसन्द नहीं कर सकते। असंयमी और अपनी स्त्रीको आत्महत्या करनेमें तत्पर करनेवाले पुरुष भी यदि सुधारक बन सकते हैं और रामचन्द्रपंत जैसे सच्चरित्र पुरुषोंकी भी अनुमतिसे इन्दिराको प्राप्त कर सकते हैं तो हमारी समझमें वह सुधारकत्व आदर्श नहीं बन सकता। प्रभाकर और इन्दिरा दोनोंहीका चरित्र यदि उज्वल बनानेका प्रयत्न किया जाता तो पाठकों पर अच्छा प्रभाव पड़ता । उपन्यासमें अस्वाभाविकता भी बहुत आ गई है।
४ जैनतीर्थयात्रा दीपक।। लेखक, फतेहचन्द्र इन्द्रप्रस्थनिवासी । मिलनेका पता, पुस्तकालय जैनपाठशाला धर्मपुरा, देहली । मूल्य चार आना । इसमें तमाम जैनतीर्थोका और मार्ग में मिलनेवाले शहरोंका यात्रोपयोगी वर्णन है। रेल-मार्ग, किराया आदि भी बतलाया है । पुस्तक छोटी होनेपर भी कामकी है । यात्रियोंको इसकी एक एक प्रति साथ रखना चाहिए।
५ शिवराम भजनसंग्रह। कर्ती, मास्टर शिवरामसिंहजी, जैनपाठशाला रोहतक । प्रकाशक, धर्मप्रकाशिनी जैनसभा, रोहतक। इसमें 'जातिसुधार और धर्मप्रचार विषयक नई तर्जके ६० जोशीले भोजन हैं।' मास्टर शिवरामसिंहजी नेत्रहीन है; परन्तु बड़े जोशीले और स्वार्थत्यागी काम करनेवाले हैं। रोहतक पाठशालाकी आप वर्षोंसे अवैतनिक सेवा कर रहे हैं। उनकी यह रचना देखकर प्रसन्नता होती है। भजन साधारणतः अच्छे हैं । ६० पृष्ठकी पुस्तकका मूल्य दो आना अधिक नहीं है।
६ हनुमानचरित नौविल भूमिका। हाईस्कूल बुलन्दशहरके मास्टर लाला बिहारीलालजी वी. ए. जैन इसके लेखक और प्रकाशक हैं । आपने उर्दूमें 'हनुमानचरित ' नामका एक नौविल
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