Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 04
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 89
________________ विविध-प्रसंग। २७७ या उपन्यास लिखा है । यह छोटीसी पुस्तक उसकी भूमिका है। इसमें बतलाया है कि हनुमान वानर या बन्दर नहीं थे, वे जैनशास्त्रोंके अनुसार एक प्रतिष्ठित कुलके वीर पुरुष थे। जो लोग उन्हें बन्दर कहते हैं वे गलती पर हैं । भाषा अच्छी है । यह मालूम न हुआ कि उर्दू उपन्यासकी भूमिका हिन्दीमें छपानेकी क्या अवश्यकता थी। ७ अनमोल बूटी। इसके लेखक भी उक्त मास्टर साहब हैं । यह एक अपूर्व पुस्तक है । इसमें अर्क या आक ( मदार ) वक्षकी जड़ों, डालियों, पत्तों, फूलों फलोंसे सैकड़ों तरहके रोगोंको आराम करनेकी तरकीबें लिखी हैं । प्रत्येक रोगके लक्षण, उनमें यह बूटी देनेकी विधि, परहेज़ आदि भी लिखे हैं । दवा बड़ी सस्ती और सब जगह सुलभ है । परीक्षा करके देखना चाहिए । पुस्तककी भाषा कठिन उर्दू है, यदि कुछ सुभीता है तो यह कि नागरी अक्षरोंमें छपी है। यदि सरल हिन्दीमें लिखी गई होती तो इससे बहुत उपकार होता । मूल्य साढ़े चार आने। ८ विज्ञानप्रवेशिका। प्रयागमें एक विज्ञानपरिषत् स्थापित हुई है । वह देशी भाषाओंमें विज्ञानसम्बन्धी पुस्तकें निकालेगी। यह उसकी पहली पुस्तक है। इसके लेखक हैं श्रीयुक्त रामदास गौड़ एम. ए. तथा शालग्राम भार्गव एम. एस. सी. । लेखकोंके नामसे ही इस पुस्तककी उत्तमताका पता लग सकता है। बहुत ही सरलतासे सुगम भाषामें यह पुस्तक लिखी गई है । बालकोंको इस विषयका बोध करानेका इससे सहज ढंग शायद ही कोई और हो । हिन्दीमें सरल विज्ञानकी सबसे अच्छी यही पुस्तक है । जैनपाठशालाओंमें इसके पढ़ानेका प्रबन्ध अवश्य करना चाहिए। इसके पढ़ानेमें जो सामान आवश्यक होता है उसका मूल्य तीन रुपयाके करीब है । पुस्तकका मूल्य ३) है। असली जैनपंचांग । ज्योतिषरत्न पं० जियालालजी जैनीका पंचांग विक्रीके लिए तैयार है । मूल्य दो आना । पांचके मूल्यमें छह । जैनग्रन्थरत्नाकर कार्यालय-बम्बई। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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