Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 04
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 87
________________ विविध प्रसंग. २७५ इसका अनुवाद भी अच्छा होता । भाषादोष, भावशैथिल्य, और अस्पष्टताकी भरमार है। गुजरातीपन जहाँ तहाँसे निकला पड़ता है । गुजरात के कई दोहे ज्योंके त्यों रख दिये हैं जिन्हें हिन्दी भाषाभाषी शायद ही समझें । पुस्तक मोटे मोटे अक्षरोंमें १०६ पृष्टोंपर छपी है। एक रुपया मूल्य बहुत अधिक है । हितैषीके टाइपमें यदि यह पुस्तक छपाई जावे तो इसका मूल्य चार आनेसे भी कम हो । २ संसारमें सुख कहाँ है ? पृष्ठ संख्या १०८ । मूल्य दो आना । जैनतत्त्वप्रकाशिनी सभा का यह २६ वाँ ट्रेक्ट है । इसे पढ़कर हम बहुत ही प्रसन्न हुए । सभाने अबतक जितने ट्रेक्ट प्रकाशित किये हैं, उनमें यह सबसे अच्छा है । यह जैनहितेच्छुके सम्पादक श्रीयुत वाडीलाल मोतीलाल शाहके लिखे हुए एक गुजराती निबन्धका अनुवाद है । अनुवादक महाशय इतने परमार्थी हैं कि उन्होंने अपना नामतक प्रकाशित नहीं ोने दिया है | अनुवाद बहुत सरल और सुन्दर हुआ है । हम चाहते हैं कि हमारे प्रत्येक भाई इस नये ढंगसे लिखे हुए मार्मिक और शिक्षाप्रद निबन्धको पढ़ें और इस पर विचार करें । धर्मात्माओं को इसकी सौ सौ पचास प्रतियाँ लेकर जैनों और जैनेतरोंमें बाँटना चाहिए । बाबू चन्द्रसेनजी जैनवैद्य लेखकों क नाम प्रकाशित करनेमें बहुत प्रमाद करते हैं । अन्य ट्रेक्टों के समान इसमें भी उन्होंने यह प्रमाद किया है । 'वा. मो. शा. ' ' इतना लिखनेसे कोई लेखकका परिचय नहीं पा सकता; स्पष्ट लिखना चाहिए था । आजकल लेखका नाम - देखकर ही पुस्तक पढ़ने की इच्छा होती है । , ३ इन्दिरा । लेखक, श्रीयुत बालचन्द्र रामचन्द्र कोठारी बी. ए. और प्रकाशक सुरस - ग्रन्थप्रसारक मंडली, गिरगांव बम्बई । मूल्य १) | मराठीका उपन्यास है । किसी भाषाका अनुवाद या रूपान्तर नहीं है, स्वतन्त्र लिखा गया है। इसमें एक स्त्रीके रहते हुए और उसके उदरकी एक विवाहयोग्य कन्या होते हुए भी पुत्रप्राप्तिकी इच्छासे बुढ़ापे में दूसरा विवाह करनेवाले एक धनिककी दुर्दशाका चित्र खींचा गया है। इसमें सन्देह नहीं कि स्वतंत्र रचनाके लिहाज़से कोठारीजीको इस पुस्त Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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