Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 04
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 85
________________ सहयोगियोंके विचार। २७३ रियोंके लिये अवश्यम्भावी कुछ रोगों में मृत्यु के मुख में पतित होनेवाली हिन्दू नारियों की जितनी बड़ी संख्या मिलेगी और किसी जाति में नहीं। बहुत आदमी भ्रम से यह समझ बैठे हैं कि जो ज्यादह काम करता है वह ज्यादह तन्दुरुस्त होता है। पर वास्तव में यह बात नहीं है । काम करने पर तन्दुरुस्ती नही, काम करनेके ढंग पर तन्दुरुस्तीका विचार होना चाहिए। रो रो कर और तबियत को विवश कर के जो काम किया जाता है वह तन्दुरुस्त आदमी का काम नही कहा जा सकता । हमारी स्त्रियां घरों में दासी रूपमें जो काम कर रही हैं वह भी इसी ढंगका काम है । लोग कहते हैं कि चक्की पीसने से और बरतन मांजने से तन्दुरुस्ती अच्छी रहती है। हम भी कहते हैं, वेशक, पर मैशीन की तरह दिन रात कामकरने, विश्राम और उपयुक्त आहार न मिलने पर वह चक्की और चौका उनके लिये आरोग्यप्रद चीजें हैं या रोगप्रद ? काम के बाद आराम और आराम के बाद काम, प्रकृति का साधारण नियम है । यदि इस नियम का अपवाद देखना हो तो हमारी स्त्रियों की अवस्था देखिये। ' जब तक हम अपनी स्त्रियों का आदर करना नहीं सीखेंगे, उनको खुली हवा और प्रकाशमें नही रखेंगे, उनको दासीवत् रखने की वजाय गृहलक्ष्मीके रूपमें उनकी घरों में प्रतिष्ठा नहीं करेंगे और अपनी निकृष्ट वृत्तियों की पूर्तिका आला न समझ कर उनमें ठीक समय उपस्थित होने पर गर्भाधान न करेंगे उस समय तक वे भी मनुष्य रूपमें पशु और वीर विद्वानोंकी वजाय भीरु और मूर्ख पुरुष पैदा करना बंद नहीं करेंगी। [वैद्य, अंक १] युद्ध में एक सिपाही के मारने का खर्च। सारे भुमण्डल की समस्त जनसंख्या एक अरब पचहत्तर करोड़ (१७५००००००) है । जनसंख्या में प्रतिवर्ष सवा करोड़ की वृद्धि होती रहती है । क्योंकि आये साल आठ करोड़ बच्चे पैदा होते और पौने सात करोड़ मनुष्य मर जाते हैं । अर्थात् भूतल पर प्रतिदिन सवा दो लाख का जन्म, और पौने दो लाख की मृत्यु होती है। इस हिसाब से एक दिन में चालीस हज़ार की परिवृद्धि होजाती Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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