________________
२७४
जैनहितैषी
है । सो यदि दिन रात निरन्तर कोई घातक अपनी सुतीक्ष्ण तलवारसे प्रतिक्षण मनुष्यों का एक एक सिर काटता रहे तो यमराजके कार्य में ( मरने में ) फी सैकड़ा एक की वृद्धि हो सके । इस ( यमराजकृत ) मृत्युसंख्या के सामने युद्ध की मृत्युसंख्या तुच्छ सी प्रतीत होती है ! रूस जापान युद्ध में दो लाख सैनिक मृत्यु के ग्रास बने थे । पर इस प्रवर्तमान युद्धमें प्रथम चार मासमें ही हत सैनिकोंकी संख्या पच्चीस तीस लाख तव बताई जाती है । यदि इसी गति से एक वर्ष तक यह युद्ध चलता रहे हैं सिर्फ इतना फर्क पड़ेगा कि सवाकरोड़ के स्थान में पच्चीस लाख ही जनसंख्या बढ़ सकेगी । रूस जापान के युद्ध में १०३ गोलियां एक सैनिक की हत्या पर खर्च आई थीं। और रूस टर्की की लड़ाईमें एक सिपाही को मारने पर ४७ हजार रुपया खर्च पड़ा था। रूस जापान में एक सैनिकके मारनेका खर्च साठ हजार रुपये से भी अधिक हुआ था । अर्थात् एक जान का नाश करनेके लिये एक मन सुवर्ण और एक हजार गोलियां या साठ हजार रुपये का खर्च होता है !! आजकल योरप इसी 'पुण्यकार्य' में लगा हुआ है, और इसी के लिये अपनी सम्पत्ति लुटा रहा है! इस युद्ध की समाप्ति पर फिर हिसाब जोड़ा जायगा कि कितने हज़ार पौंड एक एक हज़ार मनुष्यों की जान लेने में खर्च हुए।
[ भारतोदय, अंक ४३।]
पुस्तक-परिचय ।
१ प्रभुभक्ति । अनुवादक और प्रकाशक, एम. के. बोहरा-अजमेर । यह गुजरातीके-'निष्काम भक्ति ' नामक निबन्धका अनुवाद है। अनुवादक महाशयने मूल लेखकके नामका उल्लेख करनेको या उनके प्रति कृतज्ञता प्रकाश करनेकी कोई आवश्यकता न समझी। पर निबन्ध बहुत अच्छा है । बड़े ही अच्छे विचारोंसे भरा हुआ है। सहृदयजन इससे बहुत आनन्दलाभ करेंगे। क्या ही अच्छा होता यदि
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org