Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 04
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 62
________________ जैनहितैषी - पठनक्रमके अनुसार हिन्दी, भूगोल, गणित, गृहकार्य और धर्मकी शिक्षा दी जाती है । २५० समितिका एक पुस्तकालय भी है । उसमें हिन्दीकी तथा अँगरेजी आदिकी कई हज़ार पुस्तकें संग्रह हैं । इससे जैन अजैन सब एक सा लाभ उठाते थे। जयपुरका प्रसिद्ध हिन्दी पुस्तकालय ' नागर्र भवन' समितिको ही मिल गया था । प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थोंका संग्रह और उद्धार करनेके लिए भी एक विभाग स्थापित किया गया था और उसके द्वारा जयपुर समस्त भंडारोंकी सूची तैयार कराई गई थी; परन्तु आगे कोई योग्य कार्यकर्त्ता न मिलनेके कारण यह काम बन्द कर दिया गया विद्यार्थियोंको व्याख्यान देना भी सिखलाया जाता था । उनके सामने अच्छे अच्छे व्याख्यान होते थे, जिससे वे अपने चरित्रको उदार उन्नत और धर्ममय बनावें और लोगोंके कल्याण करनेकी शक्ति - वक्तृत्व शक्ति प्राप्त कर सकें । छात्रालयमें कालेजके पढ़नेवाले विद्यार्थी भी रक्खे जाते थे और जो असमर्थ होते थे उनसे कुछ काम लेकर उन्हें कुछ आर्थिक सहायता कर दी जाती थी । ऐसे विद्यार्थियोंके हृदय पर धार्मिक संस्कार डालनेका सेठीजी बहुत प्रयत्न करते थे । थोड़े ही समय में उन्हें धर्मसे प्रेम हो जाता था और उनकी धर्म तथा समाजकी सेवा करने की ओर रुचि हो जाती थी । उनके यहाँके ऐसे कई विद्यार्थी आज जैनसमाजकी सेवा कर रहे हैं । I समिति एक ऐसी अच्छी संस्था थी कि उसकी विशेष विशेष Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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