Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 04
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 77
________________ सेठीजीको मामला। इस समय अपने कर्तव्यकी पालना करनेमें जैनसमाजका जो समूह या जो प्रान्त कायरता दिखलावेगा उसके सिर पर सदाके लिए कलंकका बोझा लद जायगा और आज जिस तरह अर्जुनलालजीको कष्ट भोगना पड़ा है उसी तरह किसी समय उसे भी या उसके किसी निरपराध व्यक्तिको भी कष्टमें पड़ना पड़ेगा। आज सासके दिन हैं तो कल बहूके भी दिन आयेंगे। __ यदि जैनसमाजमें अपना शान्त कर्तव्य पालन करने योग्य जागृति भी न होगी और उससे सरकार तथा जयपुर राज्य दोनों ही इस विषयमें सारे देशके अँगरेजी और देशी समाचारपत्रोंकी आवाज़ सुननेमें प्रमाद करेंगे तो अन्तमें बिना अपराधके कष्टमें बिलबिलाते हुए एक दुखी मनुष्यकी 'हाय' कमेदेवके गुप्त कानूनके अनुसार अपना काम आगे पीछे कभी न कभी किये बिना न रहेगी: 'तुलसी' हाय गरीबकी, कबहुँ न निष्फल जाय। मुए छागकी चामसों, लोह भस्म हो जाय ॥ ५-३-१५ बाडीलाल मोतीलाल शाह । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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