Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 04
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 79
________________ सहयोगियोंको विचार। २६७ नामक एक पुस्तकसे इस बातका अभी पता लगा है । प्राकृत और अपभ्रंश भाषामें बौद्धोंके बहुतसे संगीतोंकी प्राप्ति हुई है। बौद्ध किसे कहते हैं, इस विषयमें अनेक मुनियोंके अनेक मत हैं । यदि संसारत्याग करके मठोंमें वास करनेवाले साधु ही बौद्ध कहे जावें तो फिर गृहस्थ बौद्धोंको बौद्ध न कह सकेंगे। यदि पंचशील ( हिंसा नहीं करना, झूठ नहीं बोलना, चोरी नहीं करना, शराब नहीं पीना, व्यभिचार नहीं करना ) ग्रहण करनेवाले ही बौद्ध कहे जावे तो फिर व्याध, धीवर आदिका बौद्धधर्ममें प्रवेश करनेका अधिकार नहीं रहता । नेपाल और तिव्वत आदिके बौद्धोंके मतसे सारी पृथिवीके लोग बौद्ध हैं। लंकानिवासी केवल अपना ही उद्धार करके निश्चिन्त हैं । नेपाली और तिव्वती कहते हैं कि जो बोधिसत्व होगा उसे जगत्के उद्धार करनेकी प्रतिज्ञा करनी होगी । इसी कारण नेपाल और तिव्वतके बौद्ध अपनेको 'महायान' और लंकाके बौद्धोंको ' हीनयान' सम्प्रदाय के बतलाते हैं। यान' का अर्थ है पन्थ या मत । बौद्धोंके प्रधान ग्रन्थका नाम है प्रज्ञापारमिता । महायान- पन्थकी सारसे सार बात ' करुणा ' है । प्रज्ञापारमिताके अनेक संस्करण हैं । सैकड़ों हजारों श्लोकोंसे लेकर तीन पन्नों तककी प्रज्ञापारमिता हैं । सभीका यह प्रधान आदेश है कि 'सब जीवों पर करुणा करो।' बौद्धोंकी करुणा बहुत गंभीर है। बौद्ध लोग जातिको नहीं मानते; इसलिए उनकी सन्तान 'बौद्ध' होकर जन्म नहीं लेती, अर्थात् पैदा होते ही कोई ‘बौद्ध ' नहीं कहलाने लगता । शुभाकर गुप्तके 'आदिकर्मरचना ' नामक बौद्धस्मृतिके मतसे जिसने बुद्ध, धर्म और संघ इन तीनकी शरण ले ली है वही बौद्ध है। शुरू शुरूमें बौद्धधर्म सन्यासियोंका धर्म था । जो सन्यास लेना चाहता था उसे एक सन्यासीको मुरब्बी बनाकर सन्यासियोंके विहार में जाना पड़ता था। बौद्धसन्यासीको भिक्षु, समूहको संघ, भिक्षुओंके निवासस्थानको संघाराम, और संधारामके मध्यके मन्दिरको विहार कहते हैं। स्थविर ( वृद्ध भिक्षु) कुछ प्रश्न करते हैं । उस समय पाँच भिक्ष और भी उपस्थित रहते हैं । नाम, धाम, कोई कठिन रोग तो नहीं है, कभी राजदंड तो नहीं भोगा है, राजकर्मचारी तो नहीं है, भिक्षापात्र है या नहीं, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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