Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 04
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 78
________________ जैनहितैषी - सहयोगियों के विचार । बौद्धधर्म । बौद्धधर्मको माननेवाले जितने लोग हैं उतने किसी भी धर्मके माननेवाले नहीं। चीन, जापान, कोरिया, मंचूरिया, मंगोलिया और साईबिरिया, नेपाल, सिंहल ( सीलोन ) के अधिकांश लोग बौद्ध हैं । तिव्वत, भूटान, सिकिम, रामपुर बुसायरके सब ही लोग बौद्ध हैं। वर्मा, स्याम, और अनाम अर्धे अर्ध बौद्ध हैं। २६६ एक समय तुर्किस्तान, अफगानिस्तान और बलूचिस्तान बौद्धधर्मकी खानि थे; वहाँसे बौद्धधर्म पारस्य ( ईराण ) के और तुर्किस्तान के पश्चिममें फैला था । रोमन कैथलिक ईसाइयोंके बहुतसे आचार-विचार पूजापद्धतियाँ बौद्धोंके ही समान हैं । उनके सेंट वारलाम और जोषेफट ये दो महात्मा बौद्ध और बोधिसत्व शब्दके केवल रूपान्तर हैं । भारतवर्षीय हिन्दुओंके धर्म और आचारव्यवहार में बौद्धमत और उसके भाव अब भी गुप्त रीति से चल रहे हैं । बंगालके धर्मठाकुरके पूजनेवाले बौद्ध ही हैं । बिठोबा और बिल देवताओंके भक्त अपना परिचय बौद्ध-वैष्णव कहकर देते हैं । बंगालियोंके तंत्रशास्त्रमें तो बौद्धधर्मका आभास बहुत ही स्पष्ट हो रहा है। । सिंहलदेशमें जो बौद्धधर्म प्रचलित है वह कितनी ही धर्मनीतियोंका समूह मात्र है । नेपालके बौद्धधर्म में दर्शनतत्त्वों की अधिकता है और वह विज्ञान - मूलक है । वर्मामें पूजा पाठोंकी अधिकता है तिव्वतके बौद्ध कालीपूजा करते हैं, मंत्रतंत्र पढ़ते हैं, होम - जप करते हैं और मनुष्यपूजा करते हैं। चीनदेशके बौद्ध सब तरहके जीवोंकी हिंसा करते हैं और सब तरहके मांस खाते हैं । जापान और चीन बौद्ध अनेक देव - देवियोंकी उपासना करते हैं । बौद्धधर्म कहीं तो पूर्वपुरुषोंकी उपासनाके साथ, कहीं भूतप्रेतोंकी उपासना के साथ और कहीं देहतत्त्वकी उपासनाके साथ मिल गया है । वह कहीं शुद्ध बुद्धके समान और कहीं शुद्ध नागार्जुनके समान चलता है । बुद्धदेवके आदेशोंका प्रचार जब जिस देशमें हुआ है, तब उसी देशकी प्रचलित भाषामें लिखा गया है; यहाँ तक कि ईराणकी भाषा में और रोमकी भाषामें भी लिखा गया है । 'विमलप्रभा ' " Jain Education International For Personal & Private Use Only C www.jainelibrary.org

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