________________
२७०
जैनहितैषी
शास्त्र में बिलकुल आज्ञा नहीं है ? ऐसी शोचनीय दशा में मैं 'हितेषीं' से सहा. यता मांगता हूं कि वह मुझ को बतावे कि मेरा क्या कर्त्तव्य है।"
भाइयो ! आपने अपने एक दुःखित भाई का हाल पढ़ा । अब आप क्या राय देते हैं ? विचार कीजिये और सावधानी से विचार कीजिये । हमारे यहां चार गोत्र बचाने की रस्म है लेकिन जहां तहां तीन गोत्र में भी सम्बंध हुआ करते हैं जिसका कभी कभी नतीजा यही होता है कि कुछ दिनों के लिये बिरादरी में थोकबन्दी हो जाती है और जो प्रभावशाली होता है उसी के ज्यादा साथी हो जाते हैं । जाति के नेता पंच चौधरी महाशयों का कर्तव्य है कि इस मामले का एक दफै अच्छी तरह विचार करलें । किन्तु इस विषय में जो विचार हो शास्त्र तथा देश काल की आवश्यकता के अनुसार हो।
इसी गोत्रसम्बंधी विषय में एक पत्र रियासत अलवर से भी हमारे पास आया है जिसमें इस प्रकार से लिखा है " एक बात आपसे दरयाफ्त करने की यह है कि मेरे भाई की स्त्री का देहान्त हो गया। दूसरा विवाह करना आवश्यक है। पहली स्त्री से एक लड़का है जिसका विवाह रावत गोत्र में हो गया है। अब इसका निर्णय करके सूचना दीजिये कि दूसरे विवाह में लड़के की स्त्री के कोई गोत्र बचाने की जरूरत होगी या क्या ? और होगी तो कौनसे गोत्र की होगी ? कृपा कर शीघ्र उत्तर दीजिये।" ___ समस्त विचारवान् भाइयों से हमारी प्रार्थना है कि ऊपर लिखे प्रश्नों पर अच्छी तरह विचार कर अपनी सम्मति प्रगट करें। जाति के नेता, पंच चौधरी तथा शिक्षित ( तालीम याफ्ता ) पुरुषों का कर्तव्य है कि जाति में उठते हुए प्रश्नों की विवेचना करें और “ जिस पर पड़ेगी वह भुगतेगा" ऐसे क्षुद्र विचारों को त्याग कर सब के हित की बातों का उचित रीति से निर्णय करें। किन्तु जो हो ठीक युक्ति व प्रमाण के साथ हो । विना प्रमाण व युक्ति के बात माननीय नहीं हो सकती। जातीय बातों में देश की आवश्यकता पर विशेष ध्यान देना होता है।
[ खण्डेलवाल हितैषी अंक ६]
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org