Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 04
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 75
________________ सेठीजीका मामला । २६३ की सलाह देनेकी कृपा करे । व्यक्तिगत अधिकारोंकी रक्षा के लिए सर्वस्वका भी होम कर देनेके लिए तैयार हो जानेवाले ब्रिटिशोंसे क्या इतनी भी आशा करना अनुचित है ? उच्च सिद्धान्तकी रक्षाके लिए कालके बन्धनवाले कानून बदले जा सकते हैं और भूतकालमें इस तरह कई बार बदलने भी पड़े हैं; तब समझमें नहीं आता कि इसी समय कानूनकी ओट लेकर क्यों मौन धारण कर लिया गया है मैसूर राज्यके लिए तो यहाँतक आज्ञा दी गई थी कि रेवेन्यू, टेक्स, न्याय, व्यापार, कृषि आदि मैसूर राज्यकी प्रजाके हितरक्षणसम्बन्धी प्रत्येक विषयमें महाराजको हमेशा गवर्नर जनरलकी सलाहके अनुसार वर्ताव करना चाहिए । इस तरह जब प्रत्येक विषयमें हस्तक्षेप करना सरकारने उचित समझा है तब ब्रिटिश इंडियाके एक नागरिकको बिना प्रमाणके जेलमें हँसते देखकर क्या वायसराय साहब इतना भी हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं कि इस मामलेकी जाँच करनेके लिए राजाको सूचना कर दी जाय । यदि कर सकते हैं तो अभीतक क्यों नहीं किया ? क्या यहाँके देशी राज्योंकी प्रजा ब्रिटिश राज्यकी प्रजा नहीं कहलाती : यदि किसी देशी राज्यका रहनेवाला हिदुस्तान से बाहर जाता है तो उसे ब्रिटिश प्रजाके रूपमें' पासपोर्ट' मिलता है और 'ब्रिटिश कॉन्सल' उसकी, ब्रिटिशप्रजा समझकर ही रक्षा और सहायता करता है । तब क्या उन्हीं देशी राज्योंकी प्रजाका खास हिदुस्तान के भीतर कष्ट सहन करते समय ब्रिटिशकी सहायता पानेका हक छिन जाता है ? मेरी समझमें तो यहाँ उसका दूना हक़ है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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