Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 04
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 73
________________ सेठीजीका मामला । २६१ दी थी, आज उन्हीं महावीरके अनुयायी सम्प्रदाय और पंथों में ऐसे जकड़ गये हैं कि इन बेड़ियोंसे ही फोड़ने में मस्त रहते हैं । इससे अधिक हो सकती है ? निरन्तर एक दूसरेका सिर लज्जाकी बात और क्या प्रताप - सम्पादक पटियाला - केसका उदाहरण देकर आर्यमसाजकी एकताकी प्रशंसा करते हैं; परन्तु मेरा विश्वास है कि यदि जैनसमाज अपनी संकीर्णता और स्वार्थपरायणता छोड़ दे, एकता और कृतज्ञता सीखे तो यह भारतके व्यापारके अधिकांश भागकी अधिकारिणी चौदह लाख संख्यावाली जाति केवल एक ही महीने के भीतर अर्जुनलालजीको बन्धमुक्त करा सकती है । आज ग्यारह महीना हो गये, बतलाइए जैनोंने अबतक क्या आन्दोलन किया है ? क्या गाँव गाँवमें तीनों शाखाओंकी ओरसे सभायें हुई हैं ? क्या गाँव गाँवसे जयपुर महाराजके पास या वायसराय साहबके पास न्याय माँगनेके लिए तार गये हैं ? क्या तीनों सम्प्रदायोंकी कान्फरेंसों और प्रान्तिक सभाओंकी ओरसे, जैन एसोसियेशन आफ इंडियाकी ओरसे, जैन ग्रेज्युएट एसोसियेशनकी ओरसे, समस्त जैनपत्रसम्पादकोंकी ओरसे और जैनधर्मोपदेशकोंकी ओरसे माननीया ब्रिटिश सरकारकी सेवामें इस आशय की सार्थनायें की गई हैं कि अर्जुनलालजीका अपराध प्रकट करने के लिए जयपुर राज्यको प्रेरणा की जाय ? क्या बिना माँगे सगी माता भी अपने बच्चेको दूध पिलाती है ? For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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