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जैनहितैषी
__ मैं देशीराज्योंका गौरव बढ़ता हुआ देखनेकी निरन्तर प्रतीक्षा किया करता हूँ और इसलिए मैं यह कदापि अच्छा नहीं समझता कि ब्रिटिश सरकार उनके कामोंमें हस्तक्षेप करे; परन्तु यहाँ प्रश्न यह है कि जब पहले कई बार इस तरहके मामलों में सरकारने हस्तक्षेप किया है तब इस समय क्यों नहीं करती ? अभी कुछ ही महीने पहले जामनगर राज्यके एक मामलेमें सरकारको हाथ डालना पड़ा था। और इसके पहले तो ऐसे बीसों मौके आचुके हैं जब कि सरकार लोगोंकी प्रार्थनाओं पर और बिना प्रार्थनाओंके भी देशीराज्योंके काममें हाथ डाल चुकी है। लार्ड हेस्टिंग्सकी सरकारने देशी राज्योंकी-विशेष करके राजपूतानेके राज्योंकी अन्धाधुन्धी देखकर अनेक बार उनके कामोंमें हस्तक्षेप किया था । स्वयं जयपुर राज्यमें ही राजा जयसिंहके समयमें प्रजाके हितके लिए कई बार सरकार बीचमें पड़ी थी । निजाम और मैसूर जैसे प्रथम श्रेणीके राज्योंके विषयमें भी सरकार अपनी तटस्थ रहनेकी पालिसीकी रक्षा न कर सकी थी। प्रजाको कष्ट देनेवाले मल्हारराव गायकबाडको तो पदभ्रष्ट करने तकके लिए सरकार लाचार हुई थी । इन्दौरैके होल्कर महाराजको रिटायर होना पड़ा था।
पण्डित अर्जुनलालजीको बिना जाँच किये जेलम सडानेके कारण हम किसी राजाका या राजकर्मचारीका अपमान करनेके लिए सरकारसे प्रार्थना नहीं करते हैं; हम अपनी न्यायशीला ब्रिटिश सरकारसे, केवल यही माँगते हैं कि वह जयपुर राज्यको सेठीजीका अपराध प्रमाणित करनेकी या अपराध साबित न हो तो छोड़ देने
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