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जैनहितैषीmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm ओर तो बहुत ही अधिक लक्ष्य दिया जाता था । जैनधर्मके मूलभूत कर्मसिद्धान्तका ज्ञान वे छोटेसे छोटे बच्चोंको इतना अच्छा कर देते थे कि सुननेवाले आश्चर्य करते थे । विद्यालयकी अन्तिम श्रेणीके विद्यार्थियोंकी योग्यता अँगरेज़ीमें इतनी अच्छी हो जाती थी कि वे कुछ ही समय तक प्राइवेट परिश्रम करके मैट्रिकमें भरती हो जाते थे । संस्कृतमें उनकी प्रवेशिकासे भी अच्छी योग्यता हो जाती थी
और हिन्दी साहित्यके तो वे बहुत अच्छे जानकार हो जाते थे उनके कई विद्यार्थी हिन्दीके अनेक पत्रोंमें लेख लिखते थे और कोई कोई तो कविता भी कर सकते थे । हिन्दीके सेठीजी अनन्र भक्त हैं । इस विषयमें वे अपने विद्यार्थियोंका खास तौरसे उत्साह बढ़ाते थे। हिन्दीका उन्होंने खास तौरसे अध्ययन किया है । यद्यपि उन्हें समय बहुत ही कम मिलता था, तो भी उन्होंने हिन्दीमें कई पुस्तकें लिखी हैं जो अभीतक प्रकाशित नहीं हुई हैं । वे अच्छे लेखक हैं । कविताका भी उन्हें अभ्यास है । उनका बनाया हुआ — महेन्द्रकुमार नाटक ' गद्यपद्यमय है और बहुत ही सुन्दर है।
विद्यालयमें गणित, इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र, पदार्थविज्ञान, चित्रकारी आदि सब विषय पढाये जाते थे और इतिहासादि कई विषयोंकी पढ़ाई तो उनकी बहुत ही अच्छी होती थी। उनकी शिक्षाका क्षेत्र बहुत ही विशाल है । वे यह नहीं चाहते कि जैनविद्यार्थी किसी संकर्णि परिधिके भीतर कैद कर दिये जावें और वे संसारके विशाल ज्ञानसे वंचित रहकर अंधश्रद्धालु बन जावें। विद्यालयमें जितने कार्यकर्ता थे वे प्रायः अल्पवेतन लेकर काम
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