Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 04
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 63
________________ पं० अर्जुनलालजी सेठी बी. ए.। २५१ बातोंका उल्लेख करनेके लिए ही बहुत स्थान चाहिए । हमने यहाँ मोटी मोटी बातें बतला दी हैं। अधिक जाननेके लिए समितिकी रिपोर्ट देखना चाहिए। हमारी समझमें सेठीजीका वास्तावेक परिचय पानेके लिएउनके कर्तव्यशील जीवनका महत्त्व समझनेके लिए समितिके कामोंको छोड़कर और कोई साधन नहीं है । उनका अन्तरंग शरीर समितिके ही रूपमें विद्यमान था । ___ हमारा विश्वास है कि यदि सेठीजीकी — समिति ' दश ही वर्ष और चल जाती तो जैनसमाजकी प्रगति इतनी हो जाती जिसकी कि हम कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। अभी तो उसका प्रारंभ ही थाकाम करनेके दिन तो उसके अब आये थे; परन्तु जैनसमाजका दुर्भाग्य कि उस पर अकालहीमें एक वज्र आकर पड़ा और वह नष्ट भ्रष्ट हो गई। सेठीजीका शिक्षाप्रचारके समान समाजसुधारकी ओर भी लक्ष्य है। उन्होंने जो महत्त्वका और सबसे आवश्यक कार्य अपने हाथमें ले रक्खा था उसके देखते हुए यद्यपि उन्हें इस कार्यमें हाथ न डालना चाहिए था; तथापि जैनसमाजके कल्याणकी-उसकी दशा सुधारनेकी भावना उनके हृदयमें इतनी प्रबल थी कि उन्हें यह कार्य बलात् करना पड़ता था। इससे उन्हें अनेक संकीर्ण हृदय व्यक्तियोंका कोपभाजन बनना पड़ा और बहुतोंने तो उनके मार्गमें काँटे बिछानें तकका प्रयत्न किया । किन्तु वे अपने विचारोंमें इतने दृढ थे कि उन्होंने किसीकी ज़रा भी परवा न की-सब कुछ हानियाँ सहकर भी वे अपने कर्तव्यपथ पर आरूढ रहे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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