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जैनहितैषी
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छोडकर उन्हें कभी किसीने टोपी लगाये न देखा होगा । खाना पीना बहुत ही साधा रखते हैं । कष्ट सहन करनेमें तो वे बहुत ही बढ़े चढे हैं । थोड़ेसे भुने चने साथमें रखकर सैकड़ों मीलोंकी सफा कर आना उनके लिए मामूली बात है।
सेठी के कुटुम्बमें उनकी सहधर्मिणी, एक पुत्र और दो कन्यायेंहैं । अपनी स्त्री श्रीमती गुलाबबाईको उन्होंने इस प्रकारकी शिक्षा दी है, उनके विचारोंको इतना उन्नत और उदार बना दिया है
और उनके मनमें समाजसुधारकी आवश्यकताके भाव इतने दृढ कर दिये हैं कि वे इनके कामोंको अच्छा ही नहीं समझती हैं किन्तु इन्हें बहुत कुछ सहायता भी पहुँचाती हैं। सेठीजीका विश्वास है कि जो पुरुष अपनी सहधर्मिणीको अपने विचारोंकी अनुयायिनी । और शिक्षिता नहीं बना सकता है वह समाजका काम कभी सफलताके साथ नहीं कर सकता।
पुत्र प्रकाशचन्द्रकी अवस्था इस समय ११ वर्षकी है। लड़कियाँ छोटी छोटी हैं । प्रकाशचन्द्रको आप स्वयं ही पढाते थे । आप यह नहीं चाहते हैं कि वह बी. ए., एम. ए. पास करके वकील बन जाय या नौकरी कर ले। आपकी यही इच्छा है कि वह भी अच्छी तरह शिक्षित होकर अपना जीवन देश, धर्म और समाजकी सेवाके लिए अर्पण कर दे । 'प्रकाश' होनहार लड़का है। उससे बातचीत करके और उसके इस छोटीसी उम्रके विचार सुनकर चित्त बहुत ही प्रसन्न होता है।
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