Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 04
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 64
________________ २५२ जैनहितैषी वे सुधारक हैं; परन्तु आविचारक नहीं हैं । समाजमें जिन | सुधारोंकी वास्तवमें आवश्यकता है, जिनसे समाजका कल्याण होनेकी संभावना है और जिनसे जैनधर्मके सिद्धान्तोंमें कोई बाधा नहीं आ सकती उन्हीं सुधारों के लिए वे प्रयत्न करते थे । राजपूतानेमें छोटी छोटी सैकड़ों कुरीतियाँ प्रचलित हैं उन्हें सेठीनीने बहुत कुछ बन्द करा दिया है । कन्याविक्रय, बाल्यवृद्धविवाह, रंडियोंका नाच और फिजूलखर्चीके मिटानेमें उन्हें बहुत सफलता हुई है। उन्होंने अनेक विवाह बहुत ही थोड़े खर्च सर्वथा सभ्य और उच्चरीत्यानुसार करवाये हैं । समाजसुधारके लिए उन्होंने एक नाटकमण्डली स्थापित कर रक्खी थी। इसके नाटकोंका लोगों पर बड़ा प्रभाव पड़ता था । अभी दो वर्ष हुए इनके एक नाटकमें लगभग दश हज़ार दर्शक उपस्थित हुए थे ! जैनोंकी तमाम जातियोंमें परस्पर रोटी-बेटी व्यवहार जारी करनेकी वे बहुत आवश्यकता बतलाते हैं। इस विषयमें उनकी युक्तियाँ सुनने योग्य होती हैं । जैनोंकी तीनों शाखाओमें-दिगम्बर श्वेताम्बर स्थानकवासियोंमें मेल मिलाप बढानेका-प्रीतिभाव उत्पन्न करानेका वे बहुत उद्योग किया करते थे। इसके लिए उन्होंने एक भजनमण्डली स्थापित कर रक्खी थी जो बारी बारीसे तीनों सम्प्रदायके मन्दिरोंमें जाकर प्रीतिवर्धक भजन गाती थी। कभी कभी वे तीनों सम्प्रदायके शिक्षितोंको एकत्र करते थे और उनका एक साथ प्रीतिभोज कराते थे। अपने विद्यालयमें वे तीनों सम्प्रदायके विद्यार्थियोंको रखते थे; उनकी धर्मशिक्षाका भी उन्होंने यथोचित प्रबन्ध कर रक्खा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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