Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 04
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 49
________________ विविध-प्रसंग। २३९ लाओ और अन्नको खूब चबाकर गले उतारो।" संस्थाकी ओरसे जुदा जुदा भाषाओंमें अबतक पचासों ट्रेक्ट छप चुके हैं । केवल रेलखर्च या डाकखर्च देकर प्रत्येक ट्रेक्टकी चाहे जितनी प्रतियाँ चाहे जो वितरण करनेके लिए मँगा सकता है । कई ट्रेक्ट हिन्दीमें भी हैं । संस्था जैनधर्मके मुख्य उद्देश्य जीवदयाको लेकर ही काम कर रही है, धर्मसम्बन्धी दूसरी बातोंसे वह कोई सरोकार नहीं रखती । उसके साहित्यमें किसी खास धर्मकी बुराई भलाईका एक अक्षर भी नहीं मिलसकता और इस कारण उसकी पुस्तकोंको प्रत्येक धर्मके मनुष्य प्रसन्नतासे पढ़ सकते हैं। उसकी यह कार्यप्रणाली अच्छी और अनुकरणीय है । हम अपने पाठकोंसे आग्रहपूर्वक निवेदन करते हैं कि वे इस संस्थाके उद्देश्योंके प्रचारमें हर तरह सहायता करें, उसके साहित्यका प्रचार करें और बन सके तो कुछ द्रव्यसे भी सहायता करें । ८ महात्मा गोखलेका स्वर्गवास । भारत माताके सुपूत माननीय महात्मा गोखलेका ता० १९ को पूनामें हृद्रोगसे एकाएक स्वर्गवास हो गया । मृत्युके समय उनकी अवस्था ४९ वर्षकी थी। वे केवल भारतवर्षके ही नहीं संसारके एक प्रकाशमान रत्न थे। निःस्वार्थवृत्तिसे देशकी एकनिष्ठ सेवाकरनेवालोंमें उनका आसन सबसे ऊँचा था । एक दरिद्र ब्राह्मणके कुलमें उत्पन्न होकर उन्होंने उच्चश्रेणीकी विद्या सम्पादन की थी। उनके कुटुम्बीजन इस आशामें थे कि अब वे अपने ऊँचे ज्ञानके बलसे धनी बन जावेंगे; परन्तु उन्होंने ज्ञानका फल धन नहीं समझा, वे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94