Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 04
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 50
________________ २४० जैनहितैषी उस धनके कमानेमें लग गये जिससे कि इस समय उनकी कीर्ति दिग्दिगन्तव्यापिनी हो रही है। उनका धर्म, धन, सुख जो कुछ था. सो एक भारतवर्ष था । भारतके ही कल्याणकी वांछा करते हुए उनकी जीवनलीला समाप्त हुई । आज सारा भारतवर्ष उनके वियोगसे शोकाकुलित हो रहा है । वीस हज़ारसे भी अधिक मनुष्य उनकी स्मशानयात्रामें गये थे! इससे पाठक समझ सकते हैं कि वे किस श्रेणीके महात्मा थे । देशका शायद ही कोई नगर होगा जहाँ उनका शोक न मनाया गया हो । विदेशोंमें भी उनके लिए शोकसभायें हुई हैं। वे राजा और प्रजा दोनोंके प्यारे ' नृपतिजनपदानां दुर्लभः कार्यकर्ता' थे । उनका जीवनचरित बड़ा ही शिक्षाप्रद है। यदि देशके नवयुवक म० गोखलेका अनुकरण करके देशकी निष्काम सेवा करना सीखें तो भारतके सुखी समृद्ध होनेमें बहुत देर न लगे। ९ माणिकचन्द्र जैन-ग्रन्थमाला। स्वर्गीय दानवीर सेठ माणिकचन्द हीराचंदजी जे. पी. के स्मारक-फण्डसे जो ग्रन्थमाला निकालनेका निश्चय किया गया था उसका काम प्रारंभ हो चुका है । एक ग्रन्थके दो फार्म छपभी चुके हैं। दूसरे ग्रन्थोंके सम्पादनका प्रबन्ध हो रहा है; आशा है कि पहले ग्रन्थके तैयार होनेके पहले ही दूसरा प्रेसमें पहुँच जायगा। इस कार्यकी ओर जैनसमाजको ध्यान देना चाहिए। इसके सब ग्रन्थ लागतकी कीमत पर बेचे जावेंगे । धर्मात्माओंको इसके प्रत्येक ग्रन्थकी सौ सौ पचास पचास प्रतियाँ बाँटनेके लिए. लेनेकी आज्ञा भेज देना चाहिए। Jain Education International For Personal & Private Use Only . www.jainelibrary.org

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