Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 04
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 34
________________ २२४ जैनहितैषी पिताकी तथा दूसरे दलालोंकी पूजा करनेके लिए भी कुछ चाहिए, तब कहीं मुश्किलसे यह सुदलेभ स्त्रीरत्न प्राप्त होता है। पर यह सबके भाग्यमें नहीं । मेरे जैसे हज़ारों पढ़े लिखे हट्टेकट्टे नवयुवक तो इस रत्नके लिए जीवन भर तरसते रहते हैं तो भी नहीं पा सकते। एक रत्नसे ज्यादा रखनेका तो किसीको अधिकार ही नहीं है। तब बतलाइए हम कैसे मान लें कि आपके ९६ हज़ार स्त्रियाँ थीं ? ___ हमारे यहाँ जो धनी हैं वे अपने धनके जोरसे साठ पैंसठ वर्षकी उम्र तक स्त्रियाँ प्राप्त कर लेते हैं; आप छह खण्डके राजा थे इस लिए अपनी अतुलित सम्पत्तिके जोरसे संभव है कि आपने भी स्त्रियोंके लिए कुछ प्रयत्न किया हो; परन्तु इस प्रयत्नमें भी इतनी सफलता कदापि प्राप्त नहीं हो सकती कि एकदम ९६ हजार स्त्रियाँ आपको मिल जावें ! स्त्रियाँ भी मनुष्य हैं, वे ऐसी चीज नहीं कि फरमाइशके माफ़िक तैयार कराई जा सकें। और आपके जमानेमें तो स्त्रीजातिकी बड़ी प्रतिष्ठा थी । तब यह भी माननेके लिए जी नहीं चाहता कि आपने उन्हें भी उसी तरह प्राप्त कर ली होंगी जिस तरह अठारह करोड घोड़े और चौरासी लाख हाथी प्राप्त किये थे ! ____ मुझे उम्मेद है कि आप 'रिव्यू आफ रिन्यू के सम्पादक मि० स्टेडके समान एक पत्र या संदेशा भेजकर-आदिपुराणकी उक्त ९६ हज़ार स्त्रियोंकी बातका खण्डन कर देंगे और यदि यह बात वास्तवमें ही सच हो तो कृपा करके वह तरकीब लिख भेजेंगे जिससे कि स्त्रीरत्न इतनी बहुलतासे प्राप्त हो सकते हैं। इस : Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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