Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 04
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 44
________________ २३४ जैनहितैषी - किसे कहते हैं | इस ग्रन्थके तैयार करनेमें बाबू साहबने गजबका परिश्रम किया है । समग्र महाभारत, भागवत, विष्णुपुराण, ब्रह्मवैवर्तपुराण, हरिवंशपुराण, आदि ग्रन्थोंका अनेक बार स्वाध्याय अध्ययन और मनन करके यह छोटासा ग्रन्थ बनाया गया है । श्रीकृष्णकी वर्तमान सहचारिणी राधिका — जिसके बिना आजकलके समयमें श्रीकृष्णकी गति ही नहीं है परन्तु महाभारतमें जिसका जिक तक नहीं है— कहाँसे आई, इसके विषयमें जो खोज बाबू साहबने की है वह बड़ी ही कीमती है। महाभारतकी लोकसंख्या इससमय लगभग एक लाख है; परन्तु जिससमय यह बना है, उस समय सिर्फ पच्चीस हज़ार था । इसके सिद्ध करनेमें बड़ी ही गहरी छानबीन की गई है और उसमें बाबू साहबने पूरी सफलता प्राप्त की है । दूसरे विद्वान् इस तरहके सैकड़ों प्रयत्न कर रहे हैं और बतला रहे हैं कि अध्ययन करना किसे कहते हैं। क्या इस तरहके प्रयत्नोंकी हमारे यहाँ आवश्यकता नहीं है ? केवल इतना कहदेने से अब काम नहीं चल सकता कि “ आचार्योंका मतभेद है, वास्तविक बात तो केवली भगवान् ही जान सकते हैं । " परिश्रम करनेसे उक्त मतभेदोंका बहुत कुछ पता लग सकता है । हरिवंश और उत्तरपुराणके मतभेदोंका रहस्य जानने के लिए, प्राकृत हरिवंश, प्राकृत महापुराण, श्वेताम्बराचार्य श्रीहेमचन्द्रका त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित, पाण्डवपुराण, महाभारत, हरिवंश, भागवत, विष्णुपुराण आदि बीसों ग्रन्थोंके अध्ययनकी ज़रूरत है । इसी तरह पद्मपुराण और उत्तरपुराणमें जो अन्तर है उसके लिए इस कथासम्बन्धी समस्त श्वेताम्बर - दिगम्बर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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