Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 04
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 45
________________ विविध प्रसंग | २३५ ग्रन्थोंके सिवाय वाल्मीकि रामायण, बौद्धजातक आदि ग्रन्थोंका भी स्वाध्याय करना चाहिए । यह बात हम केवल कथाग्रन्थोंके विषयमें ही नहीं कह रहे हैं। द्रव्यानुयोग अध्यात्म आदिके ग्रन्थों का भी इसी तुलनात्मक पद्धति से अध्ययन करनेकी आवश्यकता है । इससे सैकड़ों नई नई बातोंका पता लगेगा | श्वेताम्बरी ग्रन्थोंका भी हमें अध्ययन करना चाहिए और उन बातों पर विचार करना चाहिए जिनके विषयमें दोनोंका मतभेद है । ऐसा करनेसे केवल ज्ञान ही न बढ़ेगा बल्कि बहुत से मतभेदोंका मूल भी मालूम हो जायगा । 1 1 हम आशा करते हैं कि हमारे समाज के पण्डित महाशय और बाबू साहब दोनों ही इस ओर ध्यान देंगे और जैनधर्मका गभीर अध्ययन करके उसके फलसे जैनसाहित्यका, जैनसमाजका और अपने देशका कल्याण करने में तत्पर होंगे । यह स्मरण रखना चाहिए कि केवल धर्म धर्म कहने से धर्मकी प्रभावना नहीं होगी, इसके लिए सब ओरोंसे प्रयत्न होना चाहिए । ५ अरबी साहित्य में हिन्दू जातिकी प्रतिष्ठा । अरबी भाषाका साहित्य किसी समय बहुत बढ़ा चढ़ा था। बड़े बड़े विद्वान् लेखकोंने उसके साहित्यको पुष्ट किया है। संस्कृतके पचासों ग्रन्थोंके अनुवाद अरवी भाषामें मिलते हैं। उंदलस देशके साअद नामके बहुश्रुत पण्डितका बनाया हुआ ' तबकातुल उमम' अर्थात् 'मनुष्य जातिका वृत्तान्त' नामक ग्रन्थ है । प्रसिद्ध इतिहासज्ञ मुंशी देवीप्रसा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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