Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 04
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 38
________________ २२८ जैनहितैषी प्रश्नको देशव्यापी कर दिया है। जैनसमाजकी नींद टूट गई है और हम बड़े हर्षके साथ प्रकट करते हैं कि वह कार्यक्षेत्रमें उतर पड़ी है । कलकत्ता, लखनौ, इलाहाबाद, बनारस, मिर्जापूर, अमरोह फीरोजपुर, रोहतक आदि बड़े बड़े नगरोंमें सभायें हुई हैं, जगह जगह चन्दा एकत्र हो रहा है, लगभग १५००)रु० जैनमित्रके आफि समें आ चुके हैं, १५००)रु० कलकत्तेकी सभामें एकत्र हुए हैं। और में, कई स्थानोंसे रुपये एकत्र होनेके समाचार मिले हैं । महाराज जयपुर और वायसराय साहबकी सेवामें अर्जी भेजनेके लिए जगह जगहसे दस्तखत होकर भी आ रहे हैं, कई हजार सहियाँ आ चुकी हैं। बड़े बड़े प्रतिष्ठित पुरुषोंने इस विषयमें सहानुभूति दिखलाई है। सिर्फ आकोलासे ( बरार ) से ही कोई २० वकीलोंकी सहियाँ आई हैं जिनमें से एक महाशय आनरेवल हैं । इलाहाबादके सुप्रसिद्ध वकील आनरेबल डा० तेजबहादुर सप्रू श्रीमती गुलाबबाईके वकील नियुक्त हुए हैं। उन्होंने अपना काम शुरू कर दिया है। वे एक मेमोरियल महाराजा जयपुरकी सेवामें भेज चुके हैं । वायसराय साहबकी सेवामें मेमोरियल भेजनेका प्रयत्न हो रहा है। डेप्यूटेशनके लिए भी उद्योग जारी है । लाट साहबकी लेजिस्लेटिव कौन्सिलमें और विलायतकी पार्लियामेंटमें यह प्रश्न उपस्थित किया जाय इसके लिए भी प्रयत्न हुआ है । हमको विश्वास है कि यदि हम इसी तरह उद्योग करते रहे तो वह दिन बहुत ही समीप है जब हम अपने समाजके निःस्वार्थ सेवक श्रीयुत अर्जुनलालजी सेठीके मुक्त होनेका शुभ समाचार सुनानेके लिए समर्थ हो सकेंगे । यह Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94