Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 04
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 41
________________ विविध-प्रसंग। २३१ हरणसे हमारे भाइयोंका डर बिल्कुल दूर हो जायगा और वे इस मामलेमें जीजानसे उद्योग करेंगे । दो बातोंकी सबसे बड़ी ज़रूरत है। एक तो यह कि तमाम बड़े बड़े शहरोंमें पब्लिक सभायें या जैनसभायें की जावें और उनका वृत्तान्त समाचारपत्रोंमें प्रकाशित कराया नाय । दूसरे, जगह जगह चन्दा एकत्र करनेकी कोशिश की जाय और जितना रुपया एकत्र हो वह यहाँ जैनमित्रके आफिसमें भेज दिया जाय । जो सज्जन अपना नाम प्रकट न कराना चाहें वे भी चन्दा दे सकते हैं । रुपयोंकी बहुत आवश्यकता है । महाराजाजयपुर और वायसराय साहबके पास जो डेप्युटेशन जानेवाला है उसमें समाजके प्रतिष्ठित सज्जनोंको मेम्बर बनना चाहिए । इसके लिए भी प्रयत्न करनेकी ज़रूरत है। समाचारपत्रोंमें लेख प्रकाशित करना, कराना, सफलताके दूसरे उपाय सोचना, सुझाना, जगह जगहसे सहियाँ कराके भेजना, आदि और भी बहुतसे करने योग्य काम हैं। जिससे जो बने उसे वही करना चाहिए। यह एक ऐसा मामला हैं जिससे संसार जानेगा कि हम अपने भाइयोंकी रक्षाके लिए भी कुछ कर सकते हैं या नहीं । ४ धर्मशास्त्रोंके गभीर अध्ययनकी आवश्यकता। दूसरे समाजोंकी अपेक्षा जैनसमाजमें धार्मिक श्रद्धा बहुत अधिक है और इस कारण धर्मग्रन्थोंके पठनपाठनकी परिपाटी जितनी अधिक जैनसमाजमें है उतनी शायद ही किसी समाजमें हो। जैनसमाजका अधिक भाग पढ़ने लिखनेका--ज्ञानोपार्जन करनेकाअर्थ, धर्मशास्त्रोंके पढ़नेके सिवाय और कुछ नहीं समझता । जैन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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