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एक चिट्टी।
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इन दिनों में मैं आदिपुराणका स्वाध्याय कर रहा हूँ । इस ग्रन्थका नाम तो आपने जरूर सुना होगा। क्योंकि इसमें आपके पूज्य पिता भगवान् ऋषभदेवका जीवनचरित है । आपके सम्बन्धमें भी इसमें बहुतसी बातें लिखी हुई हैं । जैनधर्मके अनुयायी इस ग्रन्थके प्रत्येक अक्षर और शब्दको सत्य समझते हैं । मेरा भी पहले यही ख़याल था; परन्तु अब मुझे इस पर विश्वास नहीं होता । हो भी कैसे ? इसमें लिखा है कि आपकी ९६ हज़ार स्त्रियाँ थीं ! दो चार, दश वीस, सौ पचास नहीं, एकदम च्यानवे हज़ार ! एक लाखमें सिर्फ चार हजार कम ! छोटी माटी झूट तो किसी तरह धर्मश्रद्धाके सोटेसे ठेलकर गलेकी नीचे उतारी जा सकती है; पर इतनी मोटीताजी गजवकी झूठ, भला आप ही बतलाइए कि किस तरह गले उतारी जावे ? ___ यह मैं मानता हूँ कि आपके जमानेमें और अबके जमानेमें बहुत बड़ा अन्तर है । लारवा वर्ष बीत चुके हैं. इसलिए आजकलके रीति-रिवाज़ आपके ज़मानेके रीति-रिवाजांसे मिलान नहीं खा सकते तो भी उनमें इतना ज़मीन आसमानका अन्तर नहीं हो सकता। आप. यदि कुछ दिनोंके लिए यहाँ आकर रहें तो मालूम हो कि स्त्री कितनी दुर्लभ चीज है और उसके प्राप्त करनेमें किन किन मसीबतोंका सामना करना पड़ता है। पहले तो वह द्विजवर्णों की नहीं, स्ववर्णकी नहीं, स्वजातिकी नहीं, स्व-उपजातिकी ही होनी चाहिए, फिर उसके चार या आठ गोत्र टाले जाना चाहिए । इसके बाद वरके पास धन होना चाहिए, जेवर होना चाहिए और कन्याके
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