Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 04 Author(s): Nathuram Premi Publisher: Jain Granthratna Karyalay View full book textPage 8
________________ १९८ जैनहितैषी नहीं लेता । यदि कोई उसको सताता है तो भी वह शांतिके ही काममें लाता है । यह नहीं कि बुराईके बदले बुराईका विचार करे। ___ जब मनुप्य छोटी छोटी बातोंमें शांतिको काममें लाना मीग्व लेता है तब वह बडे बडे मौकों पर भी शांत रह सकता है । ऐसे आदमीका यदि कोई प्यारेमे प्यारा सम्बंधी कालका ग्राम होजावे और उसकी मृत्युसे उसका जीवन सर्वथा निष्फल दीखने लंग तो शांति ही एक ऐसी वस्तु है कि जो उसकी तसल्ली कर सके और उसको माहस और ढाढस बँधा सके । ___ स्थूल दृष्टि से देखनेसे प्रायः दुष्ट और नीच मनुष्योंकी ही इस संसारमें बढ़ती होती दीख पड़ती है। वे ही लोग फलते फूलने मालूम होते हैं जो अपराधी, मायाचारी और दगचारी हैं। यह दृश्य ही लोगोंको धोखेमें डाल देता है और मचे मार्गमे हटाकर खोटे मार्ग पर ले जाता है। परंतु शांत मनुष्यको इसमे कुछ भी बाधा नहीं पहुँचती । यद्यपि वह देखता है कि सच्चे लोग तकलीफमें हैं और झूठे आराममें हैं. बेईमान ईमानदारोंमे बह रहे हैं. झट फरेव और मायाचारसे रुपया पैदा हो रहा है: मूर्व विद्वानोंमे अधिक लाभमें हैं तथापि वह अपने पथमे च्युत नहीं होता; इस प्रकार की बातें उसे तनिक भी नहीं सताती । वह अपना काम उत्तम रीतिसे किये जाता है और इस बातकी कोई परवा नहीं करना कि दूसरे लोग क्या कह रहे हैं और उनको इसका क्या फल मिल रहा है । इन बातोंको वह देवाधीन छोड़ देता है ! Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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