Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 04 Author(s): Nathuram Premi Publisher: Jain Granthratna Karyalay View full book textPage 7
________________ शान्ति-वैभव । १९७ त्तियों और कठिनाइयोंका भी वीरताके साथ निर्भय होकर सामना कर सकोगे । यदि तुम्हारी सम्पूर्ण आशायें और तुम्हारे सम्पूर्ण उद्योग निष्फल भी हो जायँ तो भी तुम्हें घबराहट न होगी और तुम यही कहोगे कि कुछ परवा नहीं, हो जायगा । ___ जब तुम देखो कि दूसरे लोग ईर्ष्या या द्वेषके कारण तुम्हारी निंदा करते हैं, तुम पर दोष लगाते हैं, अथवा तुम्हें और किसी प्रकार हानि पहुँचाते हैं उस समय यदि तुम्हें क्रोध आवे और तुम्हारे मनमें बदला लेनेकी इच्छा हो तो तुमको चाहिए कि शांति. को काममें लाओ । तुमको स्मरण रहे कि जो दूसरेके लिए गढ़ा खोदता है स्वयं उसके लिए कुवाँ तैयार रहता है । दूसरोंके साथ • बिना प्रयोजन बुराई करनेवाला मनुष्य आप ही उसका बुरा फल पालेता है। फिर बदला लेनेकी क्या आवश्यकता है? दुनियामें आजतक कोई भी ऐसा नहीं हुआ जिसने दूसरोंके साथ बुराई की हो और उसको किसी न किसी तरह किसी न किसी समय उसका बुरा फल न मिला हो। __ यदि मनुष्य यह समझे कि मैंने किसीके साथ बुराई कर ली, अब मेरा क्या हो सकता है तो यह उसकी भूल है । प्रकृतिमें छोटीसी छोटी चीज़ भी बा-कायदा है । हरेक चीज़का जमा खर्च होता जाता है और अंतमें सबका हिसाब होता है । हाँ, यह अवश्य है कि प्रकृति अपने हिसाबदारोंके नाम हर महीने बकाया नहीं निकालती । जो मनुष्य शांत होता है उसको बदला लेना ऐसा नीच कर्म मालूम होता है कि वह भूलकर भी उसका नाम Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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