Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 04
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 24
________________ २१४ जैनहितैषी परोपकार । DROAD DDOOLCE ( संकलित) FIR रोपकाराय फलन्ति वृक्षाःपरोपकाराय वहांत नद्यः परोपकाराय दुहन्ति गावः परोपकारार्थमिदंशरीरम् वृक्ष दूसरोंके उपकारके लिए फलते हैं, नदियाँच HSSAYE दूसरोंकी भलाईके लिए बहती हैं और गायें दूसरोंकेर पोषणके लिए दूध देती हैं, अतएव यह शरीर परोपकारके लिए ही है-इससे दूसरोंका भला करना चाहिए। 'तुलसी' सन्त सुअम्बतरु, फूलि फलहिं परहेत। . इतते ये पाहन हने, उतते वे फल देत ॥ सन्तपुरुषोंके समान आमके वृक्ष दूसरोंके ही लिए फूलते फलते हैं। लोग यहाँसे उन्हें पत्थरोंके ढेले मारते हैं; परन्तु वहाँसे वे उनके लिए मीठे फल ही टपकाते हैं । सज्जनोंकी सज्जनता यही है कि वे अपकार करनेवालोंका भी उपकार करते हैं। परोपकारशून्यस्य धिङ्मनुष्यस्य जीवितम् । जीवन्ति पशवो येषां चर्मोप्युपकरिष्यति ॥ जो दूसरोंकी भलाई नहीं करता उस मनुष्यका जीना धिक्कारवे योग्य है । पशुओंका जीना अच्छा है जो मरने पर भी अपने चमड़ेसे दूसरोंको लाभ पहुंचाते हैं। यस्मिन्जीवति जीवन्ति वहवः स तु जीवति । काकोऽपि किं न कुरुते चच्या स्वोदरपूरणम् ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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