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मनुष्य कर्तव्य ।
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चीज़ मनुष्यमें आत्मा ही है । आत्माही के कारण मनुष्यमें देखने जानने और हर एक प्रकारकी उन्नति करनेकी शक्ति पाई जाती है; परन्तु आत्मा चारों तरफसे पुद्गलसे घिरा हुआ है और पुद्गलमें एकमेक हो रहा है । इस कारण यह अपनी शक्तियों और गुणोंका पूर्ण प्रकाश नहीं कर सकता; दूसरे शब्दों में पुद्गलने इसकी शक्तियोंको छुपा या दवा रक्खा है। सूक्ष्म और स्थूल दोनों प्रकारका पुद्गल आत्मा के साथ लगा हुआ है । अनेक प्रकारके पुद्गलसे आत्मा बंधा हुआ है । उसकी दशा बिलकुल ऐसी हो रही है जैसे किसी राहगीरको कुछ डाकू मिल जायँ वे उसको चारों तरफ से घेरलें और चारों तरफसे लूटना शुरू कर दें । इसी तरह पुद्गलने आत्माके गुणों और शक्तियों को लूटना शुरू कर रक्खा है।
मनुष्य की आत्मा के साथ तीन प्रकारके शरीर हर समय लगे रहते हैं; कर्माण, तैजस और औदारिक । कार्माण शरीर आठ प्रकारके अत्यंत सूक्ष्म पुद्गलों का बना हुआ है जिनको जैनधर्म
में आठ कर्म कहते हैं। यह सूक्ष्म पुद्गल आत्माके रागद्वेषादि
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परिणाम तथा क्रोध मान आदि कषायोंके कारण आत्माकी तरफ आकर्षित होकर आत्मासे बँध जाता है और अपने समय पर उदय होकर आत्माको सुखदुःख देता है । सुखदुःख भोगते समय आत्मा । फिर रागद्वेष करता है । इस लिए पुद्गलके और और नवीन परमाणु आत्माकी तरफ खिंचकर आत्मासे बँध जाते हैं । इनमेंसे एक प्रकारका पुद्गल है जो आत्माके ज्ञानस्वभावको दबाये व ढके रहता है ।
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