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________________ मनुष्य कर्तव्य । २०३ चीज़ मनुष्यमें आत्मा ही है । आत्माही के कारण मनुष्यमें देखने जानने और हर एक प्रकारकी उन्नति करनेकी शक्ति पाई जाती है; परन्तु आत्मा चारों तरफसे पुद्गलसे घिरा हुआ है और पुद्गलमें एकमेक हो रहा है । इस कारण यह अपनी शक्तियों और गुणोंका पूर्ण प्रकाश नहीं कर सकता; दूसरे शब्दों में पुद्गलने इसकी शक्तियोंको छुपा या दवा रक्खा है। सूक्ष्म और स्थूल दोनों प्रकारका पुद्गल आत्मा के साथ लगा हुआ है । अनेक प्रकारके पुद्गलसे आत्मा बंधा हुआ है । उसकी दशा बिलकुल ऐसी हो रही है जैसे किसी राहगीरको कुछ डाकू मिल जायँ वे उसको चारों तरफ से घेरलें और चारों तरफसे लूटना शुरू कर दें । इसी तरह पुद्गलने आत्माके गुणों और शक्तियों को लूटना शुरू कर रक्खा है। मनुष्य की आत्मा के साथ तीन प्रकारके शरीर हर समय लगे रहते हैं; कर्माण, तैजस और औदारिक । कार्माण शरीर आठ प्रकारके अत्यंत सूक्ष्म पुद्गलों का बना हुआ है जिनको जैनधर्म में आठ कर्म कहते हैं। यह सूक्ष्म पुद्गल आत्माके रागद्वेषादि 45 परिणाम तथा क्रोध मान आदि कषायोंके कारण आत्माकी तरफ आकर्षित होकर आत्मासे बँध जाता है और अपने समय पर उदय होकर आत्माको सुखदुःख देता है । सुखदुःख भोगते समय आत्मा । फिर रागद्वेष करता है । इस लिए पुद्गलके और और नवीन परमाणु आत्माकी तरफ खिंचकर आत्मासे बँध जाते हैं । इनमेंसे एक प्रकारका पुद्गल है जो आत्माके ज्ञानस्वभावको दबाये व ढके रहता है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522803
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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