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जैनहितैषी
है कोई निरोगी । कोई सबल है कोई अबल । कोई विद्वान् है कोई मूर्ख । इन सब अच्छी बुरी अवस्थाओंका कारण उसी समय समझमें आ सकता है जब यह मालूम किया जाय कि मनुष्य किम किस चीज़मे मिलकर बना है और उन चीजोंका असली स्वभाव क्या है।
मनुष्य दो चीजोंसे बना है. आत्मा और पुद्गल । जो कुछ अवस्थायें मनुष्यमें पाई जाती हैं वे सब इन दोनोंके स्वभावोंके प्रभावसे होती हैं । मनुष्यकी आत्मा एक है और पुद्गलके असंख्यात परमाणु भिन्न भिन्न अवस्थाओंमें होकर उसके माथ लगे हुए हैं। आत्मा चैतन्य है। पुद्गल जड़ है। आत्माका स्वभाव देखना जानना, पुद्गलका म्वभाव म्पर्श. ग्म, गंध. वर्ण है। जानने देखनेकी शक्ति पुद्गलमें नहीं है । यदि मनुष्य केवल आत्मा ही
आत्मा होता, या यों कहिए कि शुद्ध आत्मा ही होता तो मनुष्यमें बिना किसी समय या स्थानकी कैदके जानना देखना होता, अर्थात् मनुष्य सर्वज्ञ और सर्वदर्शी होता। इसके विपरीत यदि मनुष्य केवल पुदलहीसे बना हुआ होता तो देखना जानना उसमें बिलकुल न होता। यह विचार कि मैं कोई चीज़ हूँ . मैं मुखी या दुग्बी हूँ उसमें कदापि न होता। केवल स्पर्श, रम. गंध, वर्ण ही पाये जाते, जैसे इंट. पत्थर वगैरह और चीजोंमें पाये जाते हैं। अतएव मनुप्यमें जो गुण व अवस्थायें पाई जाती हैं वे आत्मा और पुद्गल दोनोंके म्वभावोंका परिणाम है। आत्मा मनुष्यका सबसे बड़ा और सबसे जरूरी भाग है । दूसरे शब्दोंमें यों भी कह सकते हैं कि असली
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