Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 01 02
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 17
________________ प्राचीन मैसूरकी एक झलक । है, जिससे वीर कोनगाल्वदेव नामक राजाका पता चलता है। इसमें लिखा है कि कुंदकुंद-परंपरा, पुस्तक गच्छ, देशीय गण और मूलसंघके मेघचन्द्र-त्रैविद्य-देवके शिष्य प्रभाचन्द्र सिद्धान्तदेवके श्रावक महामंडलेश्वर वीरकोनगाल्व-देवने सत्यवाक्य-जिनालयको बनवाया और उसके निमित्त प्रभाचन्द्र-सिद्धांत-देवको ‘ हैंनेगडलू ' नामक ग्राम दान दिया और उस ग्रामको करसे भी मुक्त कर दिया । इस लेखके मेघचन्द्र और प्रभाचन्द्र ' श्रवणबेलगोला इन्सक्रिपशन' न० ४७ में भी आये हैं । यह दान सन् १११५ ई० के लगभग दिया गया मालूम होता है। ___ शालिग्रामकी अनन्तनाथ बस्तीकी जो चतुर्विंशति प्रतिमा है, उसके पीछे एक लेख है । उसमें लिखा है कि मूल संघ और बलात्कार गणके महानंद सिद्धांतचक्रवर्तिके श्रावक सम्बु-देव. की स्त्री बोममव्वेने इस प्रतिमाका दान ( जैनियोंके ) 'आणति नोम्मि' नामक व्रतके समाप्त करने पर किया था। ___ इनके अतिरिक्त कई और जैनप्रतिमाओं पर लेख मिले हैं, जिनसे बहुतसे जैनमुनि, भट्टारक संघ, शाखा, गण, कुल इत्यादिका पता चलता है । इनसे कई राज-वंशोंका भी निर्णय हो सकता है । यदि अब तक संग्रहीत संपूर्ण जैनलेखोंको इकट्ठा करके देखा जाय तो हमारे यहाँकी बहुत पट्टावलियाँ दुरुस्त हो जायँ और अनेक जैनराजाओंका पता लग जाय । भिन्न भिन्न कालोंमें जैनसमाजकी स्थिति कैसी रही है, इस बातका भी पता लग जाय । उदाहरणार्थ, अनेक जैनशिलालेखोंसे अब यह निश्चय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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