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जैनहितैषी
समाज शान्तिप्रिय और राजभक्त समाज है, इस लिए वह सेठीजी जैसे राजद्रोही आदमीके लिए कोई प्रयत्न करना भयप्रद समझता है। परन्तु वास्तवमें देखा जाय तो यह भय निर्मूल है और इसी लिए हमने ऊपर बतलाया है कि सेठीजीके राजद्रोही होनेका कोई भी सुबूत नहीं है; वे केवल सन्देहके कारण आपत्तिमें फंसे हुए हैं । इसलिए बड़ेसे बड़े राजभक्त समाजके लिए भी उनकी सहायता करनेमें जरा भी भयका कारण नहीं है।
किसी अपराधी समझेगये आदमीको बचानेके लिए-जबतक कि उस पर अपराध साबित नहीं हुआ है-न्यायसंगत प्रयत्न करना गवर्नमेंटकी दृष्टिमें भी कोई अपराध या राजद्रोह नहीं है। क्योंकि जबतक न्यायाधीशने उसको अपराधी सिद्ध नहीं किया है तबतक गवर्नमेंट स्वयं भी उसे वास्तविक अपराधी नहीं समझती । ऐसी दशामें कोई कारण नहीं है कि जैनसमाज सेठीजीको बचानेके लिए प्रयत्न न करे । इस प्रयत्नमें उसे राजद्रोहका जरा भी भय न करना चाहिए । यह तो एक तरहसे सरकारके न्यायविभागको सहायता पहुँचाना है—सरकारको अन्यायके कलंकसे बचानेका यत्न करना है । इसे तो हम राजभक्ति ही कहेंगे ।
राजद्रोह करनेका हमारा उद्देश्य भी तो नहीं है । हम यह कहाँ चाहते हैं कि सेठीनी राजद्रोहका काम करके भी मुक्त हो जावें । नहीं, हमारा आशय तो यह है कि यदि वे वास्तवमें निरपराधी हैं
और पुलिसके भ्रमसे कष्ट पा रहे हैं तो हमारे प्रयत्नसे उन्हें छुटकारा मिल जावे । निरपराधीको कष्टोंसे बचाना-उसकी सहायता
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