________________
जैनहितैषी -
शिक्षापद्धतिकी अच्छी जानकारी रखनेवाले अध्यापकोंको ही अपने यहाँ मुकर्रर करेंगे । क्या ही अच्छा हो यदि स्याद्वाद विद्यालय काशी और जैनसिद्धान्तपाठशाला मोरेना आदिमें शिक्षापद्धति सिखलानेका प्रबन्ध कर दिया जावे और जो विद्यार्थी वहाँसे अध्यापकी करने के लिए निकलें वे शिक्षापद्धतिके जानकार होकर निकलें । इस चिट्ठीसे इस बातका भी पता लगेगा कि पढ़ानेकी पद्धतिमें भेद होनेसे विद्यार्थियोंकी योग्यतामें कितना आकाश-पातालका अन्तर हो जाता है |
९०
महाशय, मेरे गाँवसे दो लड़के विशेष शिक्षाप्राप्त करने के लिए लगभग एकही समयमें दो स्थानोंको भेजे गये थे । दोनों लड़के हिन्दीकी पाँच कक्षायें पढ़े हुए थे और स्कूलमें दोनोंकी योग्यता लगभग एकही सी समझी जाती थी । इनमेंसे एक लड़का जयपुरकी शिक्षाप्रचारक समितिमें भरती हुआ और दूसरा एक प्रसिद्ध जैनसंस्कृतपाठशाला में भरती हुआ जिसका कि मैं उल्लेख नहीं करता चाहता हूँ । इस पाठशालाका मासिक खर्च लगभग २५०१ रुपया है और कई बड़ी बड़ी तनख्वाह पानेवाले अध्यापक हैं । पाठशाला के साथ एक छात्रालय भी है। लगभग तीन तीन वर्ष पढ़कर उक्त दोनों विद्यार्थी यहाँ अपने घर आये हुए हैं। मैंने समझा था कि इन दोनोंकी योग्यता लगभग एकसी ही होगी; परन्तु जब मैंने परीक्षा ली तब मेरे आश्चर्यका ठिकाना न रहा। यहाँ मैं यह निवेदन कर देना चाहता हूँ यह परीक्षा एक या दो दिनमें कुछ प्रश्न करके ही नहीं कर ली गई हैं; बल्कि इनके
"
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org