________________
पुस्तक-परिचय।
१२१
सकता है कि ग्रन्थकर्ताको लोग अँगरेज़ीका जानकार समझें । जो कुछ हो पुस्तक बिना मूल्य मिलती है, इस लिए अच्छे अभिप्रायसे ही प्रकट की गई जान पड़ती है । साधारण पढ़े लिखे भाइयोंको इससे लाभ उठाना चाहिए ।
९ दयास्वीकार मांसतिरस्कार । इसे बाबू बुद्धमलजी पाटणीने लिखा है और रायबहादुर सेठ कल्याणमलजी इन्दोरवालों की सहायतासे भारतजनमहामंडलके जीवदयाविभागके मंत्री बाबू दयाचन्द्रजी बी. ए. लखनऊने छपाया है। हितैषीके आकारके ११२ पृष्ठ हैं । अभीतक इस विषयके जितेन ट्रेक्ट निकले हैं उन सबसे यह पुस्तक बड़ी है। इसकी रचनाशैली कुछ शास्त्रीय ढंगकी हो गई है और बहुतसी बातें विषयसे बाहरकी लिख दी गई हैं । जैसे जैनधर्मकी उत्कृष्टताके विषयमें लोकमान्य पं० बालगंगाधर तिलककी सम्मति; इसकी जरूरत न थी क्योंकि यह पुस्तक विशेषकर जैनेतरों
के लिए लिखी गई है। तो भी दया और मांसके त्यागके सम्बन्धकी सैकड़ों : बातोंका इसमें संग्रह कर दिया गया है । इसके लिए लेखक महाशयने अच्छा
परिश्रम किया है । ऐसी पुस्तकोंका जितना ही प्रचार किया जासके उतना ही अच्छा है। बहुत करके यह पुस्तक मुफ्तमें बाँटी जाती है । आरंभमें सेठ कल्याणमलजीका संक्षिप्त जीवनचरित दिया गया है जिससे उनकी उदारताका परिचय मिलता है।
__१० प्रभुजन्मोत्सवगीत। हितैषीके पाठकोंको श्रीयुत दत्तात्रय भीमाजी रणदिवेका परिचय कईबार कराया जा चुका है । आप मराठीके नामी कवियोंमेंसे एक हैं । यह बहुत ही छोटी सी पुस्तक आपहीकी रचना है । इसे पढ़कर जान पड़ता है कि आप कैसे प्रतिभाशाली कवि हैं। इसमें आदिनाथ भगवानके जन्मोत्सवका और अभिषेकका बिलकुल नयी शैलीका वर्णन है । जहाँतक हम जानते हैं जैनधर्मके पिछले साहित्यमें इस जोड़की कविता शायद ही कोई हो । हमारे हिन्दीके पाठक इस कविताके रसका कुछ आस्वादन कर सकें, इसलिए हम यहाँ पर इसकी कुछ पंक्तियोंका भावार्थ लिख देते हैं:
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org