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सनातन जैन ग्रंथमाला के नये नियम |
इस ग्रंथमाला में, जैनदर्शन, सिद्धांत, न्याय, अध्यात्म, काव्य, साहित्य, पुराण, इतिहासादि जैनाचार्यकृत सर्व प्रकार के प्राचीन ग्रंथ संस्कृत, प्राकृत, तथा संस्कृत टीका सहित बड़ी शुद्धतापूर्वक छपते हैं वा छपेंगे। प्रत्येक खंड रायल वा सुपररायल १० फारमसे ( ८० पृष्टसे ) कमका नहिं होता । इसकी न्योछावर १२ अंकोंकी सर्वसाधारण जैनी भाइयोंसे वा जैनमंदिर वा जैन संस्थाओंसे १० ) रुपये और फुटकर एक एक अंककी २) रु. की जाती है । धनाढ्य रईसों से उनके पदस्थानुसार अधिक ली जाती है। डांक खर्च जुदा है सो प्रत्येक अंक ( खो जाने के डर से ) प/टेज वी. पी. से भेजा जाता है । इस ग्रंथमाला के १६ अंकों में नीचे लिखे आठ ग्रंथ पूर्ण हो गये वा हो जायँगे । आगेको शाकटायन व्याकरण, पद्मपुराण व श्लोकवार्तिकादि छपेंगे। यह ग्रंथमाला प्रत्येक जिनवाणी भक्त जैनीके सिवाय प्रत्येक मंदिरजी पाठशाला, पुस्तकालय संस्था में संग्रह करके भगवान की प्रतिमाजीकी तरह इनका भी नित्य दर्शन पूजन विनय करना चाहिये । ये ग्रंथ संस्कृत हैं हमारे कामके नहीं ऐसा समझ इनकी उपेक्षा व अविनय नहिं करना चाहिये | देवगुरु शास्त्र की बराबर भक्तिपूजा विनय करना चाहिये । इन आर्षग्रंथोंकी रक्षा व प्रचार करना ही जैनधर्म की रक्षा है ।
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ग्रंथमाला ग्राहक न होकर फुटकर ग्रंथ लेनेवालोंके लिये मूल्यका नियम |
१ - २ । आप्तपरीक्षा सटीक और
पत्र परीक्षा मूल एक साथ ३ | समयप्राभृत दो टीकासहित ४। राजवार्तिकजी पांच अध्याय
४।
शेष पांच अध्याय
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५) जैनेन्द्रप्रक्रिया गुणनंदी कृत
प्राचीन
६। शब्दार्णव, चंद्रिका जैनेंद्रव्या
करणकी लघुवृत्ति
ગુ
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૩ १०। जैनेन्द्रसूत्रपाठ असली छपता है || शाकटायन प्रक्रिया पूर्ण सूत्र पाठसहित ३ । ] शाकटायन धातुपाठ ५] | गणरत्नमहोदधि
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मिलने का पता --- पन्नालाल बाकलीवाल, ठि. मदागिन जैनमंदिर पो. बनारस सिटी. नोट- ये सब ग्रन्थ जैनग्रन्थरत्नाकर कार्यालय बम्बई में भी मिलते हैं ।
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७ । आप्तमीमांसा (देवागम ) अकलंक भाष्य और वसुनंदिवृत्ति सहित तथा प्रमाणपरीक्षा ९। शब्दानुशासनकी ( शाकटायन व्याकरणकी चिंतामणि नामक ) लघुवृत्ति प्रथम खंड
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