Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 01 02
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 142
________________ (१४) जैनहितैषीके नियम । १ इसका वार्पिक मूल्य पोस्टेजसहित १॥ है। - २ उपहार लेनेवाले ग्राहकोंको उपहार खर्च जुदा देना पड़ता है । इस वर्ष यह खर्च ॥ दश आना रक्खा गया है। अर्थात् जो भाई उपहारके ग्रन्थोंसहित वी. पी. मँगावेंगे उन्हें २ दो रुपया तीन आना देना होगा। - ३ इसका वर्ष दिवालीसे शुरू होता है। शुरू सालसे ही ग्राहक बनाये जाते हैं, बीचसे नहीं । जो सजन बीचमें ग्राहक बनेंगे उन्हें तब तकके निकले हुए अंक भी लेना होंगे। ४ जो भाई खोया हुआ अंक फिरसे मँगावें उन्हें तीन आनेके टिकिट भेजना चाहिए। ५ प्रबन्धसम्बन्धी पत्रव्यवहारादि इस पतेसे करना चाहिए: मैनेजर, जैनहितैषी जैनग्रन्थरत्नाकर कार्यालय हीराबाग, पो. गिरगाँव, बम्बई । पवित्र केशर । . काश्मीरकी अच्छी और पवित्र पवित्र केशर हमसे मँगाया कीजिए । हरवक्त तैयार रहती है । मू० १] तोला। सूतकी मालायें। जाप देनेकी मालायें एक रुपयेकी दश । मैनेजर, जैनमन्थरत्नाकरकार्यालय हीराबाग, गिरगाँव, बम्बई । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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