Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 01 02
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 144
________________ 'ಅಆಆಆಅಆಆ उपहारकी सूचना।। DYASCAAYAA. जिन ग्राहकोंने हमारे पास उपहार रवाना करनेकी आज्ञा भेज दी थी उनकी सेवामें इस अंकके साथ उपहारके ग्रन्थ बी. पी. से भेज दिये गये हैं। परन्तु जिन्होंने उपहारके विषयमें कुछ भी सूचना नहीं दी थी उनके पास केवल जैनहितैषी ही एक रुपया नौ जानेके बी. पी. से भेज दिया गया है। बिना मँगाये उपहार में भेजनेका कारण यह है कि यदि वी. पी. वापस हो आता तो हमें उपहारके त्रन्थोंका डाकखर्च-जो लगभग तीन आनेके होता. है-व्यर्थ ला जाता। परन्तु इससे उन्हें अधीर न होना चाहिए, उपहारको अन्थ भेजने के लिए हम अब भी तैयार हैं / इस सूचनाको पढ़ते ही हमें एक काईसे सूचित कर देखें कि उपहारके अमुक तरहके अन्य हमारे त भेज दो। न तत्काल ही // ग्यारह आनेका वी.पी. करके उपहारगः भेज देंगे / पर कार्ड लिखते समय कौनसा उपहार भेजा जाने सो सास देना चाहिए ! या तो धर्मविलास और नेमिचरित येाजनाथ मेंगा लीजिए या आत्मोद्धार और कठिनाईमें विद्याभ्यास इन दो सर्वसाधारण अन्थों के लिए लिखिए। एक त्राहकको एकही तरहके दो ग्रन्थ मिल सकते हैं। दोनों तरहके चारों नहीं मिल सकते। उपहारके ग्रन्थ इतने अच्छे और बहुमूल्य है कि उन्हें देखकर अवश्य ही लोगोंकी इच्छा होगी और वे इन्हें मॅगाये बिना न रहेंगे। परनु उपहारके अन्यों की कापियाँ हमारे पास इतनी कम हैं कि हम इन्हें बहुत समय तक न दे सकेंगे / इसलिए जो भाई ग्राहक होना चाहें उन्हें शोधता करना चाहिए। 31 जनवरी के बाद जिनकी सूचना मिलेगी उनसे चार आये अधिक शिक्षा जावेंगे अथात् रा दो मया सात आनेका वी. पी किया जायगा। -मैनेजर, जनहितैषी। Printed by Nathuram Premi at the Bombay Vaibhay Press, Servante of India Society's Building, Sandhurst Road, Girgaon Bombay, & Published by him at Hiratag, Near C.P. Tank Girgaon Bombay For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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