Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 01 02
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 131
________________ ( ३ ) अनित्यभावना । श्रीपद्मनन्दि आचार्यका अनित्यपंचाशत मूल और उसका अनुवाद | अनुवाद बाबू जुगलकिशोरजी मुख्तार ने हिन्दी कविता में किया है । शोक दुःख के समय इस पुस्तकके पाठसे बड़ी शान्ति मिलती है । मूल्य डेड़ आना । पंचपरमेष्ठीपूजा । संस्कृतका यह एक प्राचीन पूजाग्रन्थ है । इसके कर्त्ता श्रीयशोनन्दि आचार्य हैं। इसमें यमक और शब्दाडम्बरकी भरमार है । पढ़ने में बड़ा ही आनन्द आता है । जो भाई संस्कृत पूजापाठके प्रेमी हैं उन्हें यह अवश्य मँगाना चाहिए । अच्छी छपी है । मूल्य चार आना । चौवीसी पाठ (सत्यार्थयज्ञ ) । यह कवि मनरंगलालजीका बनाया हुआ है । इसकी कविता पर मुग्ध होकर इसे लाला अजितप्रसादजी एम. ए. एल एल. बी. ने छपाया है । कपड़ेकी जिल्द बँधी है । मूल्य | ) जैनार्णव । इसमें जैनधर्मकी छोटी बड़ी सब मिलाकर १०० पुस्तकें हैं । सफ़र में साथ रखनेसे पाठादिके लिए बड़ी उपयोगी चीज़ है | बहुत सस्ती है । कपड़े की जिल्द सहित मूल्य १ ) श्री पालचरित । पहले यह ग्रन्थ छन्द बंध छपा था । अब पं. दीपचन्दजीने सरल बोलचाल की भाषा में कर दिया है जिससे समझने में कठिनाई नहीं पड़ती । क्की कपड़ेकी जिल्द बँधी है । मूल्य १) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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