Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 01 02
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 132
________________ (४) धर्मरत्नोद्योत। यह ग्रन्थ आरा निवासी बाबू जगमोहनदासका बनाया हुआ है। क. वितामें है। जैनधर्मसम्बन्धी पचासों बातें कवितामें समझाई गई हैं। कविता सरल और अच्छी है। निर्णयसागर प्रेसमें बढिया एन्टिक कागज़ पर छपाया गया है। मूल्य एक रुपया। जैनगीतावली। विवाहादिके समय स्त्रियोंके गाने योग्य गीत । ये गालियोंकी चालमें धार्मिक गीत हैं । बुन्देलखंडकी स्त्रियोंमें बहुत प्रचार है । मूल्य ।) सुशीला उपन्यास। इस उपन्यासकी प्रशंसाकी ज़रूरत नहीं। दूसरी बार सुन्दरतासे छपा है। इसमें मनोरंजनके साथ जैनधर्मका सार भर दिया गया है।' पक्की कपड़ेकी जिल्द । मू० ११) कर्नाटक- जैनकवि। कर्नाटक देशमें जो नामी नामी जैन कवि हुए हैं उनका इसमें ऐतिहासिक परिचय दिया गया है। सब मिलाकर ७५ कवियोंका इतिहास है। बड़े महत्त्वकी पुस्तक है । मूल्य लागतसे भी कम आधा आना है। जिनशतक। यह श्रीमान् समन्तभद्र स्वामीका बिलकुल अप्रसिद्ध ग्रन्थ है। बहुत ऊँचे दर्जेका संस्कृत चित्रकाव्य है। हिन्दीजाननेवाले भी इसका कुछ अभिप्राय समझ सकें इस लिए मूल श्लोकोंका भावार्थ भी लिख दिया है। इस ग्रन्थकी संस्कृत टीकायें लिखनमें बड़े बड़े आचार्योंकी अक्ल चकराई है। मूल्य ॥) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144