Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 01 02
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 122
________________ १२० जैनहितैषी लाभ उठा सकें। ऐसी अवस्थामें सहयोगीको या तो उपहारकी समस्त पुस्तकें हिन्दीमें ही निकालना चाहिए, या हिन्दी ग्राहकोंको हिन्दी और गुजराती ग्राहकोंको गुजरातीकी पुस्तकें देना चाहिए । उपहारकी पुस्तकें भी कुछ समझ बूझकर निकालना चाहिए । चित्रोंके विषयमें भी सहयोगी सीमासे अधिक उदारता दिखलाता है । जिस श्रेणीके लोगोंके चित्रोंको वह स्थान दे देता है उससे हम समझते हैं कि अभी नहीं तो थोड़े ही समयमें लोगोंके हृदयसे इस बातका महत्त्व ही उठ जायगा कि किसी पुरुषका चित्र प्रकाशित होना उसके श्रेष्ठत्व या गौरवका भी द्योतक है । आशा है कि सम्पादक महाशय हमारी इन सूचना ओं पर ध्यान देनेकी कृपा करेंगे और इन्हें किसी बुरे अभिप्रायसे लिखी हुई न समझेंगे। ७ जैनतत्त्वप्रकाशिनी सभा इटावाके ट्रेक्ट । सृष्टिवादपरीक्षा, जैनधर्म, जैनफिलासफी, जैनियोंका तत्त्वज्ञान और चारित्र, वृद्धविवाह, बालविवाह, और ईश्वरास्तित्व ये सात ट्रेक्ट हमें समालोचनाके लिए मिले हैं। इनमेंसे पहले चार ट्रेक्ट जैनहितैषीमें प्रकाशित हो चुके हैं। प्रकाशक महाशय इन पर यह लिखना भूल गये हैं कि ये जैनहितैषीसे उद्धत किये गये हैं। इतना लिख देने में कुछ हर्ज न था। पाँचवें ट्रेक्टमें वृद्धविवाहकी और छठेमें बाल्यविवाहकी एक एक कल्पित कहानी उपन्यासके ढंग पर लिखी गई है । ये अच्छे नहीं हैं—कई जगह अश्लीलता आगई है । सातवेंमें पं० पुत्तूलालजीका लिखा हुआ एक निबन्ध है । पाँचों ट्रेक्ट प्रचार करनेके योग्य हैं । मिलते भी बहुत सस्ते हैं । बाबू चन्द्रसेनजी मंत्रीसे मैंगाना चाहिए। ८ सप्तव्यसननिषेध। - इसे वीरपुत्र आनन्दसागरजीने लिखा है और रायसाहब सेठ केसरीसिंहजी रतलामने प्रकाशित कराया है। प्रकाशक, ग्रन्थकर्ता और उनके गुरुके चित्र भी हैं । पुस्तककी भाषा अच्छी नहीं है । जगह जगह अंगरेज़ीके शब्द बिना कारण दिये हैं। इसमें पानीका अर्थ 'वाटर' लिखनेका इसके सिवाय और क्या कारण हो Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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